उल्लू
आज रात में उल्लू देखा,
जेहन में उभरी विस्मय रेखा।
किश्मत से बिल्कुल बेचारा,
यहां वहां फिरता आवारा।
सब खग रात में करें बसेरा,
इसको भाग्यहीनता घेरा।
डाली डाली भाग रहा ये,
सब सोएं और जाग रहा ये।
चुगद यही करता उच्चारण,
केवल दृष्टिदोष है कारण।
उल्लू कहता सूर्य कहाँ है,
जहाँ देखो अंधियार वहां है।
रात उलूकों का उजियारा।
उड़ता रहता मारा मारा।
आंखें गोल गोल हैं सुर्ख,
उल्लू को सब कहते मुर्ख।
खूसठ हुमा में भेद अनेक,
एक मूर्ख एक ज्ञान की रेख।
हुमा रहे सागर के तीर,
मोती चुगे पिये पय नीर।
उल्लू हंस का शब्द विलोम।
दोनों की पक्षी है कोम।
एक पर लक्ष्मी करें सवारी।
हंस को माता शारद प्यारी।
ज्ञान तमस जब करता दंश,
उल्लू तब बन जाता हंस।
घटकर बने घट से चुल्लू।
धन का मद करे हंस से उल्लू।
आज कल देखो यही हो रहा,
रात में कोई कोई सो रहा।
उल्लू जागे है वह परिंदा,
तू क्यों है बौराया बन्दा।
हे मानव तू हरि का वंश,
हुमा नहीं बनकर रह हंस।
अगर जरूरी न हो काम,
तो फिर रात करो विश्राम।
-सतीश सृजन, लखनऊ.