कोरा कागज
कोरा कागज
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समय की गति में खो चुका वो कागज
आज अचानक नुमाया हो गया,
उसे सलीके से उठाया
उस पर जमीं गर्द को हटाया।
माथे से लगा होंठों से चूमा,
सीने से लगा यादों में खो गया
बड़ी मुश्किल से आहिस्ता आहिस्ता
उसे खोलकर पढ़ने की ख्वाहिश
पूरी करने से रोक न सका।
पर हाय ये किस्मत
तेरी माया कौन पाया है
जो मैं ही जान पाता,
अच्छा मजाक किया तूने मेरे साथ
लम्बी खोज के बाद वो कागज मिला
जिसकी खोज करते करते
मैं निराश होकर भी खोजता रहा।
और अब जब मिला भी तो
सिर पर जैसे घड़ों पानी पड़ गया,
क्योंकि कागज कोरा का कोरा
मुझे मुँह चिढ़ा रहा
हँसी का पात्र बना रहा।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१
© मौलिक, स्वरचित