उनकी यादों की ….
उनकी यादों की ….
ये
कैसे उजाले हैं
रात
कब की गुजर चुकी
दूर तलक
आँखों की
स्याही बिखेरते
तूफ़ां से भरे
आरिज़ों पर ठहरे
ये
कैसे नाले हैं
शब् के समर
आँखों में ठहरे हैं
लबों की कफ़स में
कसमसाते
संग तुम्हारे जज़्बातों के
लिपटे
कुछ अल्फ़ाज़
हमारे हैं
हर शिकन
चादर की
करवटों की ज़ुबानी है
जुदा होकर भी
अब तलक
ज़िंदा हैं हम
ख़ुदा कसम
ये
ज़हन में
उनकी यादों की
हम पर
मेहरबानी है
सुशील सरना