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30 Sep 2022 · 2 min read

*उनका सठियाना (व्यंग्य)*

उनका सठियाना (व्यंग्य)
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उनका सठियाना इस तरह एक समारोह के रूप में मनाया गया कि सर्वप्रथम तो उन्हें यह आत्मबोध हुआ कि वह मात्र 60 वर्ष के नहीं हो रहे हैं अपितु सठिया रहे हैं अर्थात यह एक दिव्य अनुभव है । ऐसा ही जैसे कोई आत्मसाक्षात्कार हो रहा हो अथवा ईश्वर के दर्शन साक्षात होने जा रहे हों।
घर पर पत्नी से उन्होंने कहा प्रिय ! अब हम कुछ ही दिनों में सठिआने वाले हैं। सोचते हैं कि एक भव्य समारोह का आयोजन कर दिया जाए । पत्नी ने झुँझला कर कहा “तुम तो शादी के समय से ही सठिआए हुए थे ।बस मैं ही थी ,जो तुम्हें अब तक झेल रही हूँ। तुम्हारा जो मन आए करो मुझसे मत पूछो ।”
घरवाली के व्यंग्य वाण से आहत होकर उन्होंने अपनी ससुराल में फोन किया तथा साले से कहा “अब हम सठिया रहे हैं । कुछ समारोह का आयोजन होना चाहिए।”
वह बोला “जीजा जी ! अब शादी के इतने साल के बाद आप डिमांड करना बंद कर दीजिए अन्यथा मुझे जीजी से आपकी शिकायत करनी पड़ेगी । मैं आपकी कोई भी माँग पूरी नहीं करूँगा ।”
ससुराल से भी जब वह.निराश हो गए तब उन्होंने अपने कुछ मित्रों को इकट्ठा किया । उन्हें चाय पर बुलाया तथा अपनी सठिआने की योजना सामने रखी । यह भी कहा कि वह खर्चा – पानी के लिए तैयार हैं। बस सठिआने का एक अच्छा सा कार्यक्रम हो जाना चाहिए । मित्रों को हँसी- ठिठोली सूझी। आपस में विचार किया ,कानाफूसी हुई और कहने लगे कि चलो !अच्छा हास्य कार्यक्रम हो जाएगा। इनका सठिआना भी एक समारोह के रूप में मना लिया जाएगा। सब ने कहा “हाँ भाई साहब ! सठियाना एक अद्भुत क्षण होता है ,जो जीवन में केवल एक बार ही आता है । हम इस अवसर पर आपका पूरी तरह से विधि – विधान से सठिआना- उत्सव आयोजित करेंगे। बस यह बताइए कि इसमें करना क्या होगा ?”
भाई साहब सोच में पड़ गए । उन्हें यह नहीं मालूम था कि सठियाना किस प्रकार से समारोह पूर्वक मनाया जाता है। लेकिन फिर भी सब लोगों ने जब यह देखा कि भाई साहब खर्च करने के लिए तैयार हैं तब उन्होंने एक होटल में कार्यक्रम रख लिया। बड़ा सा केक काटा । रात्रिभोज का प्रबंध था । भाई साहब को एक फूलों की माला पहना दी । सिर पर मुकुट रख दिया और तालियाँ बजाकर कहने लगे “आपको सठिआना मुबारक !”
भाई साहब खुश हो गए । जब कार्यक्रम समाप्त हुआ तो भाई साहब सठिआई हुई मुद्रा में थे । होटल से बाहर आए तो कहने लगे ” अब हमारी जेब में कुछ भी पैसे नहीं बचे । जितने बैंक में जमा करके रखे थे, सब सठियाना – समारोह में खर्च हो गए ।”
सोचने लगे कि यह सब कैसे हो गया ? और फिर इसी निष्कर्ष पर पहुँचे कि “क्या बताएँ ,अब हम सठिया गए हैं।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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