उनका बचपन
जीवन की संध्या बेला में
बूढ़ी आंखों को आराम मिलेगा
जब होगा घर परिवार सामने
और नाती अंगना खेलेगा
पर आज वक्त ने देखो
करवट कुछ ऐसी बदली है
जिम्मेदारी बच्चों ने अपनी
वृद्धाश्रम पर धकेली है
क्या गलती थी उनकी बोलो
जिसने तुम्हें चलना सिखाया
सभ्यता और संस्कृति का
पाठ पढ़ा इंसान बनाया
प्यार और दो मीठे बोलों के भूखे
उन बुजुर्गों को और क्या चाहिए
दे सकते हो तो से दो स्नेह तुम ,
उनको नहीं तिरस्कार चाहिए
घर के एक कोने में रहने को
थोड़ी सी बस जगह चाहिए
थोड़ी बहुत पूछ परख और
तुम्हारे हृदय में प्यार चाहिए
जीवन भर की त्याग और तपस्या का
क्या इतना भी अधिकार नहीं
जीवन की संध्या बेला में
साथ रहना तक तुम्हें गवारा नहीं
अपना सब कुछ होम कर दिया
तुझे इंसान बनाने में
जीवन की सच्चाइयां और
सबक तुझे सिखाने में
जा…जाकर गले लगा ले उनको
परिवार का उन्हें साथ दे दे
चेहरे पर फिर वही मुस्कान वही संतोष
और उनका बचपन दे दे
और उनका बचपन दे दे…
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश