उदास हो गयी धूप ……
उदास हो गयी धूप ……
धूप सही स्वयं ने
मगर
पेड़ों की छाया ने
धरा को जलने न दिया
देख त्याग पेड़ों का
उदास हो गयी धूप
शज़र
काट दिए इंसान ने
अपने वास्ते
झोंक दिया
धरा को
भानु की
आग्नेय रश्मियों के
तपते कुंड में
स्वार्थ का तांडव देख
फिर
उदास हो गयी धूप
जर्जर काया
सूखा कंठ
तप्ता पंथ
चिलचिलाती धूप
मुखमंडल स्वेद से लथपथ
देख अपनी अग्नि का तेज
उदास हो गयी धूप
ढलते ढलते
सांझ हो गयी
सांसें ताप से
मुक्त हो गयीं
रूप धूप के
ख़त्म हुए सब
शब् ने
धूप को चुपके से
आँचल में अपने छुपा लिया
ताप को शीत का
प्यार दिया
कल का प्रभात
फिर ये सफर लाएगा
कहीं छाया तो
कहीं ताप रंग दिखायेगा
यही सोच
सोते सोते
फिर उदास हो गयी धूप
सुशील सरना