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11 Nov 2021 · 5 min read

उत्सव मैं जन्मोत्सव

बात उन दिनों की है जब मैं लगभग 8 वर्ष की आयु पूर्ण करने की दहलीज पर था मुझसे उम्र में बड़ी मेरी बहन घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण कुछ ज्यादा नहीं पढ़ सकी चुकि पापा मिल मजदूर और मेरी मम्मी कुछ आसपास के घरों में काम कर हमारा गुजारा चल जाता था समय के अनुसार दीदी बड़ी हो चुकी थी और मम्मी पापा को उनकी शादी की चिंता सताने लगी थी उन दिनों मम्मी पापा रिश्तेदारों से दीदी की शादी की बात करने लगे थे समय के अनुसार एक रिश्ता मेरे बड़े फूफा जी लेकर आए तो पापा मम्मी का मानना था कि एक बार लड़के का घर बार देख ले समय अनुसार बात तय हुई और हम मध्य प्रदेश के छोटे से जिले में फूफा जी के साथ रिश्ता देखने गए लड़के के पिता जी का छोटा सा किराना व्यवसाय था जगह छोटी होने की वजह से वहां पर उनका व्यवसाय ठीक से अच्छा चल रहा था और परिवार में केवल दो भाई थे समय अनुसार वहां पर रिश्ते की बात हो गई लेकिन घर से दूर होने की वजह से ज्यादा बार किसी का भी वहां पर आना जाना नहीं हुआ जैसे तैसे शादी होना तय हुआ और कुछ वर्षों बाद शादी हो गई शादी होने के कुछ वर्षों तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा उस समय बातचीत करने के बहुत ही कम साधन हुआ करते थे फोन तो नहीं के बराबर थे यदि कोई बात या खबर दीदी तक भिजवा नी होती तो तार का सहारा लेना पड़ता था समय बीतता गया कुछ समय बाद दीदी के वहां से एक तार आया तार को पढ़ पापा मम्मी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा बात कुछ खास ही थी लेकिन उन्होंने उस समय वह बात किसी को नहीं बताई कुछ दो-चार दिन बाद फूफा जी घर आए तो उन्होंने पूजा कि वहां की कोई खैर खबर है कि नहीं तब पापा का फूफा जी को बताना हुआ कि वह नाना बनने वाले हैं फूफा जी का खुशी का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने मम्मी को बढ़िया दाल बाटी बनाने को कहा और सभी ने साथ में बढ़िया भोजन करा और तय हुआ कि 2 दिन बाद सभी लोग दीदी से मिलने चलेंगे वैसा ही हुआ जैसा तय हुआ था हम सब बस की सवारी करते हुए दीदी के घर पहुंचे सब ने दीदी को बधाई दी और मिठाई फल इत्यादि सप्रेम भेट दी हम वहां पूरे 2 दिन रूके पास ही में वहां पर महादेव जी का मंदिर था दीदी की ससुर नहीं माने और हमें दर्शन करवाने ले गए आते समय हमने पूरे दीदी को बधाई दी और हम वहां से निकल गए सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था दोपहर में हम बैठकर सभी टीवी देख रहे थे उसी समय डाक बाबू का आवाज लगाना होगा और उसने कहा तार आया है जैसे ही पिताजी ने वह तार पड़ा वह फूट-फूट कर रोने लगे मम्मी द्वारा कारण पूछने पर उन्होंने मम्मी को बताया की हमारी खुशियां जो हमें नाना-नानी बना रही थी वह किसी कारण वर्ष खत्म हो चुकी है और दीदी हॉस्पिटल में भर्ती है मम्मी पापा का फिर एक बार दीदी के घर जाना हुआ लेकिन जब मम्मी पापा इस बार आए तो दीदी साथ में थी और तीनों के चेहरे मुरझाए हुए थे उसी दिन शाम को बुआ और फूफा जी घर आए फूफा जी के पूछने से पापा ने उन्हें बताया की दीदी के ससुर ने उन्हें अपनी बेटी को ले जाने को कहा और आगे का पूरा खर्च एवं इलाज स्वयं वहन करने की समझाइश देते हुए बिटिया को साथ भिजवा दिया बस यही चिंता पापा को सता रही थी कि अभी तो शादी में होने वाला खर्च का जो कर्ज हुआ था वही पूरा नहीं दे पाया अब इसका इलाज कैसे करवा पाऊंगा जैसे तैसे कुछ दिन बीते व्यवस्था नहीं होने के कारण पापा ने मम्मी के गहने भेज दिए और एक अच्छी महिला डॉक्टर को दिखाया इसी दौरान डॉक्टर ने काफी महंगा इलाज खत्म कर दीदी को ससुराल भेजने को कहा जैसे तैसे जीजा जी दीदी को ले गए समय बीत रहा समय-समय पर दवाइयां को कुछ खर्च पापा को दीदी के ससुराल वालों को देना पड़ता जिससे आर्थिक मामले में पिताजी की कमर टूट सी गई पिताजी बहुत परेशान रहने लगे लगभग आठ नौ महीनों के पश्चात एक बार फिर से दोपहर के समय डाक बाबू का आवाज देना हुआ और वह तार देकर चले गए जिसमें साफ स्पष्ट शब्दों में लिखा हुआ था कि आप अपनी बेटी को यहां से ले जा सकते हैं हम आपकी बेटी का खर्चा नहीं उठा सकते इस बात को पढ़ पिताजी और चिंतन मनन में आ गए जैसे तैसे पिताजी दीदी को लेकर आए लेकिन उस समय एक बार फिर से खुशी का समय था बड़ी ही विकट परिस्थितियों में मम्मी और पापा ने मिल डॉक्टर को अपनी स्थिति बताकर दीदी का इलाज निरंतर जारी रखें लेकिन डॉक्टर ने कहा कि अब इसके पेट में पल रहे बच्चे का जन्म बहुत मुश्किल से होगा महंगी दवाइयों का सेवन करवाना होगा तभी हम एक स्वस्थ बच्चे को जन्म करवा पाएंगे इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए मेरी उम्र 10 वर्ष के लगभग हो चुकी थी और मैंने पिताजी को कहां कि मैं पढ़ाई के साथ आपका हाथ भी बताना चाहता हूं उसी समय मैं स्कूल से आने के बाद एक पास की ही चाय की दुकान पर काम करने लगा जिसमें मुझे पढ़ाई के खर्च के साथ कुछ पैसे घर वालों को देने के लिए बच्च जाया करते थे धीरे धीरे सब कुछ ठीक होने लगा था और नन्हे मेहमान के आने का समय भी हो चुका था वह समय पंच दिवसीय दीपावली उत्सव का समय था हमारे आसपास के घरों में रंग रोगन का काम हो रहा था उस समय अधिकतर घर कच्चे मिट्टी के हुआ करते थे दीपावली उत्सव के दौरान घरों के बाहर मिट्टियों का छोटा सा ढेर लगा होता था जिससे कि छोटी मोटी टूट-फूट ठीक की जाती थी शाम का समय होने के कारण दीदी वही मोहल्ले में घूम रही थी तभी दीदी को पीछे से कुछ मस्ती कर रहे बच्चों ने धक्का दे दिया और दीदी मिट्टी के ढेर पर गिर गई और उसी समय उसकी तबीयत बिगड़ गई उसी दौरान मोहल्ले वालों ने जैसे तैसे उसे अस्पताल पहुंचाया उस समय मम्मी पापा घर पर नहीं थे जैसे तैसे खबर कर मम्मी पापा को अस्पताल में बुलवाया गया और डॉक्टर ने कहा कि अगले ही दिन इनका ऑपरेशन करना पड़ेगा मम्मी पापा ने डॉक्टर से काफी आग्रह किया किसी स्थिति ना बने लेकिन गिरने के कारण पेट में चोट लग चुकी थी अगले ही दिन सुबह ऑपरेशन किया गया और उन्होंने एक स्वस्थ लड़के को जन्म दिया और वह दिन दीपावली का दिन था उसी समय खुशी के माहौल में पिताजी सारे गम भूल कर बड़े खुश दिखाई दे रहे थे और इसी खुशी के दीपावली उत्सव में बालक के जन्म होने पर पिताजी ने उस स्वस्थ बच्चे का नाम उत्सव ही रख दिया अब मैं उत्सव का मामा बन चुका था और मेरी भी खुशी का ठिकाना नहीं था परिवार में सभी लोग खुश थे अब हर वर्ष दीपावली उत्सव में ही उत्सव का जन्म दिवस माना जाता है संपूर्ण भारत दीपावली पर्व मनाता है और उसी उत्सव मै हमारा भी उत्सव का जन्म दिवस हर वर्ष बन जाता है!
लेखक
उमेश बैरवा

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