उत्सव, पर्व, त्यौहार
पर्व उपहास का,उल्हास मनाते लोग,
सुरक्षित खुद नहीं, पर बिठाते जोग.
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हंस कह मोहे हंसी आवै मन बौराए.
रक्षा खातिर तोरण,माला, सूत्र लाए.
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मंदबुद्धी बंधबुद्धी तोहे कौन उतारे,
समझ अपाहिज कैसे कौन संवारे..
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विवेक जगाय छुट जाये जनेऊ धारे.
मन घोडा, मन पंछी के कर्तब सारे..
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व्यवहार है,है व्यवसाय, कैसी व्यवस्था.
बिठानी है बस,बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था.
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डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस