उत्सव का रंग न रहे फीका
विद्यालय में प्रार्थना के बाद यह घोषणा सुनने को सभी छात्र कान लगाए हुए थे । कल से होने वाले दीपावली अवकाश के बारे में ज्योहीं कक्षाअध्यापक जी ने बताया, मनुज खुशी से फुला नहीं समा रहा था। वह छुट्टियों में हमेशा की तरह इस बार भी परिवार के साथ गांव जाने वाला है। गांव की दीपावली के उत्सव का मजा अनोखा ही होता है। गाँव जाते ही उसके मित्रो के साथ दीपावली उत्सव मनाने की रूपरेखा बनाएगा । मिठाइयों का मजा, नई नई ड्रैस और कई तरह के पटाखो के बारे में सोचने लगा । यह सब सोचते सोचते ही उसे गत वर्ष की घटना उसके बाल मन को झकझोर गई ।
पिछले वर्ष गांव में दीपावली के लिये मोहल्ले में बहुत सारी विशेष तैयारी की गई थी। सभी को नये तरीक़े से उत्सव मनाने के लिये गाइडलाइन बताई गई थी। सभी को एक जगह इकठ्ठे नहीं होने की हिदायत दी गई थी। पटाखे नहीं चलाने के लिये बच्चों को समझाया गया था। मनुज का एक मित्र बहुत हठी था। उसको मना करने पर भी वह नही मान रहा था और वह एक के बाद एक पटाखे चलाने लग गया था। थोड़ी देर बाद ही अचानक मोहल्ले में कोहराम मच गया था। पड़ोस में रहने वाले दादाजी की बहुत तबियत बिगड़ गई थी और उन्हें सांस लेने में बहुत कठिनाई हो गई थी। पटाखो के धुएँ से उन्हें दमा का दौरा पड़ा था। अस्पताल भी दूर कस्बे में था। आपातकालीन उपचार की गांव में सुविधा भी नहीं थी। दीपावली के त्यौहार की वजह से वाहन किराये पर नहीं मिल रहे थे। सारा उत्सव का मजा किरकिरा हो गया था । वह तो अच्छा रहा कि आपात कालीन एम्बुलेंस को फ़ोन लगाने से वह आ गई और उन्हें जल्दी नजदीकी अस्पताल में उपचार मिल गया, जिससे वह स्वस्थ हो पाए। मोहल्ले की इस घटना से मनुज का मन खिन्न था।
उस घटना को याद करके मनुज ने अब निर्णय लिया है कि इस बार गांव में जाते ही मित्रो को पटाखों के दुष्प्रभावों और सावधानियों के बारे में सबसे पहले बतायेगा। और कोई मरीज हो तो उनका विशेष ध्यान रखा जाएगा। दीपावली उत्सव आंनद से मने, इसकी रूपरेखा मिलकर बनाएगा। दीपावली उत्सव का रंग फीका न रहे इसलिये मित्रो के संग धनतेरस से शुरू पंच दिवसीय कार्यक्रम के लिये अलग अलग सजावट व फेंसी ड्रेस प्रतियोगिता रखने के बारे में भी चर्चा करेगा ।
शिक्षा- सावधानियां ही उत्सव में रंग भरती है।
( कहानी व पात्र काल्पनिक है )
(कहानीकार- डॉ शिव लहरी )