उँगलियाँ उठेगी वफ़ा पर तुम्हारी
दिलों में उतरता नज़ारा नही है
मगर ये सफ़र छोड़ आना नही है
गुजर यार जाता बुरा दौर ये भी
हो मगरूर तुमने पुकारा नही है
सुनो ये डगर मुश्किलों से भरी है
अगर बढ़ चले लौट जाना नही है
उँगलियाँ उठेगी वफ़ा पर तुम्हारी
मुझे ज़ख्म अपना दिखाना नही है
नमक खूब छिड़का मेरे ज़ख्म पर वो
गुनहगार मेरा जमाना नही है
कटी ज़िन्दगी मुफलिसी में हमारी
सहारा तुम्ही हो ठिकाना नही है
– ‘अश्क़’