ईश्वर की संतान—वर्ण पिरामिड—(डी. के. निवातियाँ)
हे
गुणी
मानव
बस तुम
ऐसा करना
दुखे न हृदय
तेरे कारण कभी
किसी अभागे जन का
रहे न द्वेष अंतर्मन में
सत्य कर्म से हो पहचान !!
के
एक
तुम ही
हो जग में
सर्वश्रेष्ठ व्
सर्वशक्तिमान
बनाये रखना है
तुमको इसकी लाज
तभी मानेगा यह जग
तुझको ईश्वर की संतान !!
यूँ
तो है
व्यक्ति
असंख्यक
जग में भरे
पर ऐसा लगे
जैसे हो मृत पड़े
जीवित उसे समझे
संवेदना से हो सजग
दे इंसानियत को सम्मान !!
!
!
!
डी. के . निवातियाँ ____@@@