ईर्ष्यालु हो गए
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खामख्वाह लोग क्यों ईर्ष्यालु हो गए
प्रेम अभाव में क्यों झगड़ालु हो गए
अच्छाई नजरअंदाज पल में करते
शक करते रहें क्यों शंकालु हो गए
दुनिया से मिले गम मैं गमगीन हुआ
जागते हैं लोग क्यों निद्रालु हो गए
जलन में जलते हैं , राख हो जाते हैं
निन्दा करते हैं ,क्यों श्रद्धालु हो गए
हाथी दांत दिखाने के ओर. होते
मनवा है पापी क्यों दयालु हो गए
सुखविंद्र चालों का है शिकार हुआ
रंग चढ़े रोज क्यों कृपालु हो गए
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)