“ईमान की खुशबू”
“ईमान की खुशबू”
परिश्रम कर पसीने से- सींचा मातृभूमि दामन।
देहरी द्वार तक गूंजा-हाथों से घर आंगन।।
बाहों का डाल झूला-किसान झूमा सावन।
ईमान की खुशबू से-महका तन मन पावन।।
किसान की मेहनत से-मुस्कुराया सारा उपवन।
श्रम सीकर संग सिंचाई-भीगा भीगा मधुबन।।
प्यासी वसुधा हर्षाई-मुस्काया गुलाब गम वागन।
साकार सपने शरमाई-त्यौहारी श्रृंगार धड़कन।।
दिन रात की मशक्कत-झरना झरे शबनम।
लहराई देख फसलें-नाच उठा मयूर मन।।
पग-पग जोति खेती-रात दिन नंगे पगन।
बंबुलिया गीत गाता-मगन मीत भाये भवन।।
खलिहान काट बांधा-आशाओं का आज नजारा।
सर्दी,गर्मी,वर्षा, त्रिमौषम-धड़कनों का सहारा।।
झींगुर भरी रुनझुन रतिया-भोर होने लगा इशारा।।
चिड़िया चेपुल चहकी चकियां-चांद, तारे,छिपे भया भुनसारा।।
पृथ्वी पुत्र पावन-प्रकृति पुरुष प्यार पाया।
छवि छाई अवनी छइयां-जननी जनक नेह नहाया।।
नव प्रभात की किरण संग-प्रभाती गीत गाया।
अमीय अवनी “आंसू” आए-परिश्रम प्रीत गीत गाया।।