*ईमानदारी का भूत सवार होना (हास्य व्यंग्य)*
ईमानदारी का भूत सवार होना (हास्य व्यंग्य)
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मैं ईमानदार अधिकारियों को पसंद नहीं करता । कारण यह कि उनमें बुद्धि की कमी होती है । न रिश्वत लेते हैं ,न अपनी कोठी बना पाते हैं । न विदेशों की मौज-मस्ती सही ढंग से कर पाते हैं । उन्हें रिश्वत दी जाती है लेकिन वह इंकार कर देते हैं । यह भी कोई बात हुई ? आती हुई लक्ष्मी को कोई ठुकराता है ? इसी कारण इन ईमानदारों के घर में हमेशा गरीबी का वास रहता है ।
जब कलयुग के कायदे से नहीं चलोगे तो दुष्परिणाम तो भुगतना ही पड़ेगा । समाज का सीधा-साधा नियम है कि सुबह को दफ्तर में जाओ तो जेबे खाली हों और दिनभर में उन्हें इतना भर लो कि शाम तक जेबों में रुपए ठूंस ठूंस कर इतने भर दो कि जेबें फट जाएँ। इसे कहते हैं ,बेईमानी से जिंदगी जीने के मजे ।
कुछ ईमानदार अफसर बिल्कुल बुद्धिहीन होते हैं । उन्हें न दुनिया से मतलब, न दुनियादारी से कोई मतलब । बस सत्य के स्वप्न में विचरण करते रहते हैं । अरे भाई ! ईमानदारी ,साहस और चरित्र शब्दकोश की शोभा बढ़ाने वाले शब्द होते हैं । इनको अपनी कोठी के ड्राइंग रूम में शोकेस में सजा कर रखो । आने वाला हर व्यक्ति जब पूछे कि यह क्या है ? तो गर्व से बताना -” यह हमें अभिनंदन के समय मिले हुए स्मृति चिन्ह हैं, जिन पर साहस -ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा लिखा हुआ है । इन शब्दों को हमने शोकेस में बंद करके रख दिया है ताकि यह हमारे ड्राइंग रूम से बाहर न आ पाएँ। हम इनके बिना ही दफ्तर में जाते हैं और सारी नौकरी बेईमानी के साथ आराम से काट लेते हैं ।”
बड़ी संख्या में लोग इसी प्रकार से जीवन यापन कर रहे हैं । जरा अकल से काम लो। किसी को पकड़ो और उसे आरोपी बनाओ तो कम से कम अपनी औकात देखो और सामने वाले की हैसियत का अनुमान लगाओ । तुम ठहरे एक मामूली सरकारी कर्मचारी । सामने वाला अरबों – खरबों का खेल खेलता है । तुम चाहते हो कि उसे पकड़कर कानून के हवाले कर दोगे ? रहने दो भाई ! यह तुम्हारे बस की बात नहीं है ।
पुरानी कहावत है कि कमजोर लोग कानून के शिकंजे में फंसते हैं और ताकतवर लोग कानून के शिकंजे को तोड़कर बाहर आ जाते हैं । उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता । जरा सोचो ! बड़े लोगों के पास पैसा किस लिए होता है ? वह सबसे पहले तुम्हें रिश्वत दे रहे हैं ताकि तुम सुगमता से उन्हें गैरकानूनी काम करने दो । लेकिन नहीं ,तुम पर तो ईमानदारी का भूत सवार है । तुम रिश्वत के ऑफर को ठुकरा देते हो । जैसे कोई बहुत बड़ा तीर मार लिया । अरे ! तुम नहीं लोगे तो रिश्वत कोई दूसरा लेगा, दूसरा नहीं लेगा तो तीसरा लेगा । इतना बड़ा समाज का ताना-बाना है ,महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए बेईमानों की कोई कमी थोड़ी ही है। तुम रुपए नहीं कमाओगे तो कोई दूसरा समझदार आदमी रुपए पकड़ लेगा ।
शासन ,नेता ,उच्च-अधिकारी सब पैसे वालों की मुट्ठी में हैं। तुम समझते क्यों नहीं ? तुम किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे । ताकतवर लोग इतने असरदार होते है कि वह चाहें तो बेईमानों को देशभक्त घोषित कर दें और तुम्हारे जैसे ईमानदारों को बेईमान बता कर जेल में ठूंस दें । तुम्हारे पास तो मुकदमा लड़ने के लिए अच्छे वकील भी नहीं मिलेंगे ? आखिर तुम एक गरीब ईमानदार सरकारी कर्मचारी हो । बैठो और अपनी किस्मत को रोओ । तुम कुछ नहीं कर सकते । बड़े लोगों से पंगा क्यों लेते हो ?
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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