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19 Mar 2024 · 1 min read

इश्क अमीरों का!

मिटता नहीं है अंतर मरने के बाद भी,
मकबरे तो देखो शाही का फ़कीर का।
मरने बाद बैठी है मुमताज ताज में,
सौ ईंट में बस बन गया चौरा कबीर का।।

परवाह नहीं करते मुश्किल का प्रेम में,
मांझी ने तोड़डाला सीना पहाड़ का।
क्या इल्म है मुमताज़ को ताज वो राज,
मजदूर का वो हाथ, नहीं कोई झाड़ था।।

सुगनिया के प्रेम में मांझी गरीब ने,
औरों के लिए देखो रस्ता बना दिया।
था इश्क शहंशाह का एक कनीज से,
कारीगरों की जिंदगी खस्ता बना दिया।।

हम भी तो वफादार है बस शाही इश्क के,
हम देखते है ताज, दिखाते भी ताज हैं।
होता करोड़ों खर्च शहर ताज पर जहां,
मांझी पहाड़ पर “संजय” किसको नाज़ है।।

जय हिंद

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