इलाका इंसानी जमात का
सिर पर टोपी लगा लूँ तो क्या..
भगवा गमछा डाललूँ तो क्या..
गर्दन में पहन लूँ क्रोस यीशु का..
या फिर माथा टेक दूँ
पवित्र दीवाल यहूदी पर..
और कृपाण धारण कर
बौद्ध बनकर लूं मुस्कान होठों पर..
या फिर बनकर जैन लूँ द्रण संकल्प जीवन का
तो क्या..
मन्दिर चला जाऊं
तो मस्जिद जा नही सकता,
चला जाऊं चर्च तो,
गुरुद्वारे की सीडी चढ़ नही सकता..!
ये क्या कर दिया है तुमने,
इंसानी जमात का,
क्या बन गए हो कुत्ता,
और खींच लिया इलाका आने-जाने का..!
तुम लड़ रहे हो जिसके लिए,
क्या उसे मालूम भी है,
अभी बैठा है वो शांत इसका भान भी है..!
अगर उनमें ऊपर हो गया झगड़ा तो समझ लेना,
हाथीयों की लड़ाई में कुचल जाओगे चींटी की तरह समझ लेना…