इमारत….
इमारत….
शानों पे लिख गया कोई इबारत वो रात की।
…महकती रही हिज़ाब में शरारत वो रात की।
….करते रहे वो जिस्म ..से गुस्ताखियाँ रात भर –
……..फिर ढह गयी आगोश में इमारत वो रात की।
सुशील सरना
इमारत….
शानों पे लिख गया कोई इबारत वो रात की।
…महकती रही हिज़ाब में शरारत वो रात की।
….करते रहे वो जिस्म ..से गुस्ताखियाँ रात भर –
……..फिर ढह गयी आगोश में इमारत वो रात की।
सुशील सरना