इतवार सा नहीं लगता
जो भी लिखता है समाचार सा नहीं लगता
अब तो अखबार भी अखबार सा नहीं लगता
मीडिया हो गई खामोश बिकी है जब से
कोई भी चेहरा पत्रकार सा नहीं लगता
लड़ न पाएगा जमाने से अना की खातिर
खुद से इतना भी वो बेजार सा नहीं लगता
लोग कहते हैं उसे इश्क़ हो गया शायद
मगर मुझे तो वो बीमार सा नहीं लगता
जिंदगी छोटी हो रही है इस कदर ‘संजय’
अब तो इतवार भी इतवार सा नहीं लगता