इज़्तिरार प्रेम का
इज़्तिरार = बन्धन
इज़्तिरार प्रेम का
ना इस दिल पर खुद का कोई जोर हैं
बस खिंचा चला जा रहा तेरी ओर हैं
हम-तुम बंधे वो इज़्तिरार प्रेम का था
इन्हें ज्यादा खींचो न टूट जाते डोर है।
वो चश्म-ए-शब और उसे निहारता हूं
जैसे चाँद को देख निहारता चकोर है।
दिल की बेताबियाँ भी पूछो कभी तो
क्यू आज दिल की गलियों में शोर है।
जब-जब बारिश की पहली बून्द पड़े
दिल झूम उठा जैसे सावन के मोर है।
न कोई पसन्द थी न आगे कभी होगी
दिल को चुराने वाली इक तुहि चोर है।
इस मोहब्ब्त का ना अंत है ना छोर है।
बस खिंचा चला जा रहा तेरी ओर है।
हां पता मुझे तेरा दिल नारियल जैसा
जो अंदर नरम और बाहर से कठोर है।
ना इस दिल पर खुद का कोई जोर हैं
बस खिंचा चला जा रहा तेरी ओर हैं
हम-तुम बंधे वो इज़्तिरार प्रेम का था
इन्हें ज्यादा खींचो न टूट जाते डोर है।
वो चश्म-ए-शब और उसे निहारता हूं
जैसे चाँद को देख निहारता चकोर है।
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)
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