इक्यावन रोमांटिक ग़ज़लें
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(1)
चाँदनी खिलने लगी, मुस्कुराना आपका
देखकर खुश हैं सभी, दिल लुभाना आपका
है वो क़िस्मत का धनी, आपका जो हो गया
चाँद भी चाहे यहाँ, साथ पाना आपका
ख़ूब ये महफ़िल सजी, झूमने आये सभी
दिल को मेरे भा गया, गुनगुनाना आपका
आपको कैसे कहूँ, देखकर मदहोश हूँ
गूंजती शहनाई पर, खिलखिलाना आपका
जी लगाकर ही सदा, जब कहा उसने कहा
जी चुराकर ले गया, जी लगाना आपका
•••
(2)
मुहब्बत का मतलब, इनायत नहीं
इनायत रहम है, मुहब्बत नहीं
अदावत करो तो, निभाओ उसे
कि दुश्मन करे फिर, शिकायत नहीं
ग़मों से तिरा, वास्ता है कहाँ
ग़मों की मुझे भी, तो आदत नहीं
मुझे मिल गए, तुम जो, जाने-जिगर!
ख़ुदा की भी अब तो, ज़रूरत नहीं
‘महावीर’, अब कौन पूछे तुम्हें
कि जब तुमपे, कुछ मालो-दौलत नहीं
•••
(3)
मकड़ी-सा जाला, बुनता है
ये इश्क़ तुम्हारा कैसा है
ऐसे तो न थे हालात कभी
क्यों ग़म से कलेजा फटता है
मैं शुक्रगुज़ार तुम्हारा हूँ
ये दर्द तुम्हें भी दिखता है
चारों तरफ़ तसव्वुर में भी
इक सन्नाटा-सा पसरा है
करता हूँ खुद से ही बातें
क्या मुझसा तन्हा देखा है
•••
(4)
तेरी तस्वीर को याद करते हुए
एक अरसा हुआ तुझको देखे हुए
एक दिन ख़्वाब में ज़िन्दगी मिल गई
मौत की शक्ल में खुद को जीते हुए
आह भरते रहे उम्रभर इश्क़ में
ज़िन्दगी जी गये तुझपे मरते हुए
कितनी उम्मीद तुमसे जुड़ी ख़ुद-ब-खुद
कितने अरमान हैं दिल में सिमटे हुए
फिर मुकम्मल बनी तेरी तस्वीर यों
खेल ही खेल में रंग भरते हुए
•••
(5)
दिल में तेरे प्यार का दफ़्तर खुला
क्या निहायत ख़ूबसूरत दर खुला
वो परिन्दा क़ैद में तड़पा बहुत
जिसके ऊपर था कभी अम्बर खुला
ख़्वाब आँखों से चुरा वो ले गए
राज़े-उल्फ़त तब कहीं हम पर खुला
जी न पाए ज़िन्दगी अपनी तरह
मर गए तो मयकदे का दर खुला
शेर कहने का सलीक़ा पा गए
‘मीर’ का दीवान जब हम पर खुला
वो ‘असद मिर्ज़ा’ मुझे सोने न दे
ख़्वाब में दीवान था अक्सर खुला
•••
(6)
आपको मैं मना नहीं सकता
चीरकर दिल दिखा नहीं सकता
इतना पानी है मेरी आँखों में
बादलों में समा नहीं सकता
तू फ़रिश्ता है दिल से कहता हूँ
कोई तुझसा मैं ला नहीं सकता
हर तरफ़ एक शोर मचता है
सामने सबके आ नहीं सकता
शौहरत कितनी ही मिले लेकिन
क़र्ज़ माँ का चुका नहीं सकता
•••
(7)
राह उनकी देखता है
दिल दिवाना हो गया है
छा रही है बदहवासी
दर्द मुझको पी रहा है
कुछ रहम तो कीजिये अब
दिल हमारा आपका है
आप जबसे हमसफ़र हो
रास्ता कटने लगा है
ख़त्म हो जाने कहाँ अब
ज़िंदगी का क्या पता है
•••
(8)
वो जब से ग़ज़ल गुनगुनाने लगे हैं
मुहब्बत के मंज़र सुहाने लगे हैं
मुझे हर पहर याद आने लगे हैं
वो दिल से जिगर में समाने लगे हैं
मिरे सब्र को आज़माने की ख़ातिर
वो हर बात पर मुस्कुराने लगे हैं
असम्भव को सम्भव बनाने की ख़ातिर
हथेली पे सरसों जमाने लगे हैं
नए दौर में भूख और प्यास लिखकर
मुझे बात हक़ की बताने लगे हैं
सुख़न में नई सोच की आँच लेकर
ग़ज़लकार हिंदी के आने लगे हैं
कि ढूंढों “महावीर” तुम अपनी शैली
तुम्हें मीरो-ग़ालिब बुलाने लगे हैं
•••
(9)
थोड़ा और गहरे उतरा जाये
तब जाकर इश्क़ में डूबा जाये
लफ़्ज़ों में शामिल अहसासों को
महसूस करूँ तो समझा जाये
है ज़रूरी ये कोरे काग़ज़ पर
जो सोचा है, वो लिक्खा जाये
ये मुमकिन तो नहीं चाहत में
जो दिल चाहे वो मिलता जाये
सोच रहा हूँ क़ाबू में अपने
जज़्बात को कैसे रक्खा जाये
•••
(10)
ख़्वाब झूठे हैं
दर्द देते हैं
रंग रिश्तों के
रोज़ उड़ते हैं
कैसे-कैसे सच
लोग सहते हैं
प्यार सच्चा था
ज़ख़्म गहरे हैं
हाथ में सिग्रेट
तन्हा बैठे हैं
•••
(11)
नज़र में रौशनी है
वफ़ा की ताज़गी है
जियूँ चाहे मैं जैसे
ये मेरी ज़िंदगी है
ग़ज़ल की प्यास हरदम
लहू क्यों मांगती है
मिरी आवारगी में
फ़क़त तेरी कमी है
इसे दिल में बसा लो
ये मेरी शा’इरी है
•••
(12)
मुहब्बत की इच्छा, जताने बहुत
बड़े आये मुझको, मनाने बहुत
कई साल रिश्ता, निभाया सनम
मगर आप को हम, न जाने बहुत
मुझे शाम होते, पुकारो कभी
सुनाने हैं तुमको, फ़साने बहुत
खुदारा* न छेड़ो, मुहब्बत की धुन
कि हैं ज़ख़्म ताज़ा, पुराने बहुत
ख़ता बख़्श दे, अपने बीमार की
‘महावीर’ यूँ तो, दिवाने बहुत
•••
________
*खुदारा मतलब ‘खुदा के लिए’
(13)
तुझे दाग़ दिल का, दिखाये बहुत
मनाये न माने, मनाये बहुत
बड़ी कोशिशें कीं, भुला दूँ तुझे
भुलाये न भूले, भुलाये बहुत
कभी फ़ोन काटा, कभी रास्ता
महब्बत में ऐसे, सताये बहुत
कि जज़्बात तेरे, न समझे कभी
तुझे बात दिल की, सुनाये बहुत
भले आप धोके पे धोके दिए
मगर दोस्ती हम, निभाये बहुत
छिपाये छिपी ना, मुहब्बत कभी
भले आप उल्फ़त, छिपाये बहुत
•••
(14)
दिलजले को दवा, अब नहीं चाहिए
बेवफ़ा से वफ़ा, अब नहीं चाहिए
आपने चाहा था, जिस अदा से मुझे
आपकी वो अदा, अब नहीं चाहिए
लाख टूटे हैं मुझपे सितम, बस करो
इश्क़ में फिर दग़ा, अब नहीं चाहिए
वक़्त की मार, सहने लगा आदतन
बख़्श दीजे, सज़ा, अब नहीं चाहिए
ज़िन्दगी बेवफ़ा है सुना, तू भी सुन
रोज़ मुझको क़ज़ा, अब नहीं चाहिए
•••
(15)
काश! होता मज़ा कहानी में
दिल मिरा बुझ गया जवानी में
फूल खिलते न अब चमेली पर
बात वो है न रातरानी में
उनकी उल्फ़त में ये मिला हमको
ज़ख़्म पाए हैं बस निशानी में
आओ दिखलायें एक अनहोनी
आग लगती है कैसे पानी में
तुम रहे पाक़-साफ़ दिल हरदम
मैं रहा सिर्फ़ बदगुमानी में
•••
(16)
काहे की मधुशाला है जी
ख़ाली दिल का प्याला है जी
कहने को है कितना कुछ अब
लेकिन लब पर ताला है जी
भटकें, यूँ तो मयख़ानों में
दिल में मगर शिवाला है जी
हाँ-हाँ उनका गुस्सा भी तो
अपना देखा-भाला है जी
तपती रेत, सफ़र बाक़ी है
फूटा पाँव में छाला है जी
•••
(17)
दिल मिरा जब किसी से मिलता है
तो लगे आप ही से मिलता है
लुत्फ़ वो अब कहीं नहीं मिलता
लुत्फ़ जो शा’इरी से मिलता है
दुश्मनी का भी मान रख लेना
जज़्बा ये दोस्ती से मिलता है
खेल यारो! नसीब का ही है
प्यार भी तो उसी से मिलता है
है “महावीर” जांनिसारी क्या
जज़्बा ये आशिक़ी से मिलता है
•••
(18)
सच हरदम कहना पगले
झूठ न अब सहना पगले
सजनी बोली साजन से
तू मेरा गहना पगले
घबराता हूँ तन्हा मैं
दूर न अब रहना पगले
दिल का दर्द उभारे जो
शेर वही कहना पगले
राखी का दिन आया है
याद करे बहना पगले
रुक मत जाना एक जगह
दरिया सा बहना पगले
•••
(19)
और ग़म दिल को अभी, मिलना ही था
चाक अरमाँ, चुप मगर, रहना ही था
कौन देता, ज़िन्दगी भर, साथ यूँ
आदमी को एक दिन, मरना ही था
एक दरिया, आग का, दोनों तरफ़
इश्क़ में यूँ, डूबके जलना ही था
इश्क़ में नाकामियों का सिलसिला
हिज़्र में बरसों-बरस, जलना ही था
जानता हूँ, मैं तिरी मजबूरियाँ
बेवफ़ा को तो अलग, चलना ही था
•••
(20)
हमने उस, बेवफ़ा से, राह न की
तड़पे ताउम्र, उसकी, चाह न की
दर्द की रेत में, चले मीलों
फूट छाले गए, तो आह न की
हम-सा, हमदर्द, हमनवा, न मिला
आह! क्यूँ तुमने, फिर निबाह न की
जाँ भी तुम पर निसार, की हमने
हाय! तुमने, मगर, निगाह न की
थे गुनहगार, दोस्तो! हम भी
तुमने ही, ज़िन्दगी, तबाह न की
•••
(21)
ख़ुदा को छू ले, तेरा यार, आसमाँ पर है
यक़ीं के साथ, तेरा प्यार, अब वहाँ पर है
नहीं मिटेगी मुहब्बत, ये मिटाये से भी
यक़ीं मुझे, ए सितमगर, ये इम्तिहाँ पर है
वजूद अपना, बचायें भी तो कैसे, और क्यों
क़ज़ा ले जाए भले, सब्र अब, सिनाँ पर है
ख़ता वो तीर भी, तरकश में, पड़ा है कब से
ये फ़ैसला तो, मुहब्बत के, इम्तिहाँ पर है
ख़ताएँ बख़्श दो, किरदार की, मेरे दिलबर
नज़र की ताब मेरे, ग़म की, दास्ताँ पर है
•••
(22)
रात, कुछ और, गहरी हुई है
झींगुरों की, सदा, गूंजती है
दूर होकर, मिरे दिल ने, जाना
कौन मुझमें, हमेशा रही है?
चश्मा, मोज़ा, नहीं ढूंढ़ पाऊं
तेरी आदत, मुझे हो गई है
हाथ में चन्द, तस्वीरें थामे
ज़िंदगी कबसे, ठहरी हुई है
मीरो-ग़ालिब, खड़े, रूबरू क्यों
तूने सदियों को, आवाज़ दी है
•••
(23)
निर्मल, शीतल, मन देखा है
जैसे, चन्दन, वन देखा है
दीखे तुम ही, साँझ-सवेरे
मैंने जब, दरपन देखा है
बंधन में, पंछी ने जैसे
इक उन्मुक्त, गगन देखा है
दृष्टि का, विस्तार हुआ जब
अधरों पर, बन्धन देखा है
सोने जैसा, यौवन उसका
और चाँदी-सा, मन देखा है
•••
(24)
रात पूनम की, बड़ी अच्छी लगे
फूल अरबी, आयतों जैसे खिले
नक़्श दिल पे, हो रही है, शा’इरी
रोज़ मौसम, इक ग़ज़ल, मुझसे कहे
आपकी, दरिया दिली, बढ़ने लगी
आप मुझपे, मेहरबाँ होने लगे
तितलियों ने, देर तक, हैराँ किया
आपको देखा, नहीं उड़ते हुए
हुस्न की, महफ़िल, सजी थी दरमियाँ
देर तक हम, आपको सजदा किये
•••
(25)
भूली-बिसरी, यादें हैं कुछ
और पुराने, वादें हैं कुछ
जीवन इक, कड़वी सच्चाई
लेकिन मीठी, यादें हैं कुछ
तन्हा-तन्हा-सी, बरसों से
हाँ लव पर, फरियादें हैं कुछ
चाहे दिल पर, और सितमकर
देख बुलन्द, इरादें हैं कुछ
दिलवालों की, ज़ेबें ख़ाली
फिर भी वो, शहजादें हैं कुछ
•••
(26)
जब तक, दर्द का, अहसास रहा
रिश्ता तुमसे, कुछ ख़ास रहा
हालात कभी, बदले ही नहीं
पतझड़, या फिर, मधुमास रहा
साथ न मेरा, छोड़ोगे तुम
जाने क्यों, ये विश्वास रहा
कलयुग में भी, वही सूरत है
रघुवर को फिर, वनवास रहा
बाक़ी काम, किया क़िस्मत ने
मेरा तो सिर्फ़, प्रयास रहा
•••
(27)
आपने, क्यों की हिमाकत
दिलजले से, की महब्बत
कह दिया, मुझको फ़रिश्ता
ख़ूब बख़्शी, मुझको इज़्ज़त
भर गया, दामन ख़ुशी से
आपने जो, की इनायत
फूल से, नाज़ुक लवों को
छूने की, दे दी इज़ाज़त
बेरुख़ी, हमसे जताकर
क्यों निभाते, हो अदावत
•••
(28)
प्यासी आँखों की, बात अधूरी है
कैसे कहूँ कि, मुलाक़ात अधूरी है
माना के, हर ख़्वाब की, ताबीर नहीं
ख़्वाबों के बिना, हर रात अधूरी है
कुछ तो है के, लगता है, तेरे बिन
जीवन की, हर सौगात अधूरी है
कह दो ये रक़ीब से, रखवाला हूँ मैं
तेरे छल-बल-ओ-घात अधूरी है
हर खेल में जीत ज़रूरी थी साहब
इश्क़ में क्यों शय-ओ-मात अधूरी है
•••
(29)
भूल गया, थे कितने ग़म
दिल ने झेले इतने ग़म
अपनों ही से पाए, तो
ग़ैर कहाँ थे अपने ग़म
इक-इक कर सब टूट गए
जितने सपने, उतने ग़म
सबको प्यार-दुलार दिया
हमने पाए जितने ग़म
ख़ास नहीं थे कुछ यारो!
आख़िर थे ही कितने ग़म
•••
(30)
चाहतों के कुतर दे पर चाहे
जी उठूँगा मैं तू अगर चाहे
सल्तनत ग़म की जिसको मिल जाये
फिर वो खुशियों का क्यों नगर चाहे
मैं तो चाहूँगा उम्रभर तुझको
चाहे तू उसको उम्रभर चाहे
जानता हूँ कि बेवफ़ा है तू
फिर भी दिल तुझको हमसफ़र चाहे
तेरा आशिक़ कफ़न में लिपटा है
देखना तुझको इक नज़र चाहे
•••
(31)
ज़िंदगी की बहार हो तुम तो
मेरे दिल का क़रार हो तुम तो
हम भी कुछ बेक़रार हैं माना
पर बहुत बेक़रार हो तुम तो
दुश्मनों पर किया है ज़ाहिर क्यों
कहने को राज़दार हो तुम तो
क्यों पड़े ज़र्द वक़्त से पहले
रुत में फस्ले-बहार हो तुम तो
हम पे क्यों वार बैठे दिल अपना
हाय! क्या होशियार हो तुम तो
•••
(32)
मुहब्बत की खुशबू का क्या कीजियेगा
इसे दिल में अपने बसा लीजियेगा
रक़ीबों की महफ़िल में जाने लगे हो
मिरे हाथ से जाम क्या पीजियेगा
कभी आपको हम इशारा करें तो
ये पर्दा हया का गिरा दीजियेगा
है दुश्मन ज़माना तो सदियों से अपना
नए दौर में आप क्या कीजियेगा
जताते नहीं हम कभी बेक़रारी
महावीर उनको बता दीजियेगा
•••
(33)
ऐसे हाथों में सजने लगी चूड़ियाँ
जैसे फूलों पे उड़ने लगी तितलियाँ
ऐसे महकी फ़िज़ा में ये कस्तूरियाँ
जैसे जंगल में फिरने लगी हिरनियाँ
ऐसे गेसू घिरे आज रुख़सार पर
जैसे सावन में घिरने लगें बदलियाँ
उनके होंठों पे बिखरे थे यूँ क़हक़हे
जैसे बिखरी किनारों पे हों सीपियाँ
ऐसे सजकर चले आये तुम रू-ब-रू
जैसे दिल पर गिरें सैंकड़ों बिजलियाँ
•••
(34)
ये चाहत की दुनिया निराली है यारो
कोई कुछ कहे, बस ख़याली है यारो
उमंगें हैं रौशन, जवाँ और रवाँ हैं
यहाँ रोज़ ही तो दिवाली है यारो
मुक़म्मल नहीं है कोई शय यहाँ पर
ये दुनिया अधूरी है, ख़ाली है यारो
किया याद ने उनकी तनहा मुझे फिर
मुसीबत फिर इक मैंने पाली है यारो
तमाशा दिखाया है ग़ुर्बत ने मेरी
ज़ुबाँ ख़ुश्क है, पेट ख़ाली है यारो
•••
(35)
मिरी नज़र में ख़ास तू, कभी तो बैठ पास तू
तिरे ग़मों को बाँट लूँ, है क्यों बता उदास तू
लगे है आज भी मुझे, भुला नहीं सकूँ तुझे
कभी जो मिट न पायेगी, वही है मेरी आस तू
छिपी तुझी में तश्नगी, नुमाँ तुझी में हसरतें
लुटा दे आज मस्तियाँ, बुझा दे मेरी प्यास तू
वजूद अब तिरा नहीं, ये जानता हूँ यार मैं
मिरा रगों में आ बसा है, अब तो और पास तू
छिपाए राजे-ज़ख़्म तू ऐ यार टूट जायेगा
ग़मों से चूर-चूर यूँ, है कबसे बदहवास तू
•••
(36)
काँच जड़ा है अपना घर
सारे लोग बने पत्थर
कतरा-कतरा देख ज़रा
मेरी आँखों में सागर
ग़म की यूँ बरसात हुई
भीग उठा हर इक मंज़र
इश्क़ ने इतने ज़ख़्म दिए
रूह भी छलनी है अक्सर
साहेब ग़म की मत पूछो
पीता है लहू जी भर
•••
(37)
काश कि दर्द, दवा बन जाये
ग़म भी एक, नशा बन जाये
वक़्त तिरे पहलू में ठहरे
तेरी एक, अदा बन जाये
तुझसे बेबाक हँसी लेकर
इक मासूम, खुदा बन जाये
लैला-मजनूँ, फरहाद-सिरी
ऐसी पाक, वफ़ा बन जाये
कुछ उनका सन्देश भी दे दो
काश! कि प्यार, सबा बन जाये
•••
(38)
दर्दे-उल्फ़त न अब लिया जाये
दिल का सौदा अगर किया जाये
इश्क़ में वो मुकाम आया है
दूर तुझसे न अब जिया जाये
यादें काफ़ी हैं अब तो जीने को
जामे तन्हाई क्यों पिया जाये
लोग रुस्वा न कर दें अफ़साना
क्यों न होंठों को अब सिया जाये
इस ज़माने को भूल जाओगे
प्यार इतना तुम्हें दिया जाये
•••
(39)
यार ऐसा है रूठता ही नहीं
साथ ऐसा है छूटता ही नहीं
ऐ बुलन्दी तुझे सहूँ कैसे
इक नशा है कि टूटता ही नहीं
दिल का आलम अजीब आलम है
ख़्वाब जैसा है टूटता ही नहीं
तेरी ज़ुल्फ़ें हैं या क़यामत है
जो फँसा इनमें छूटता ही नहीं
हुस्न की बात होती है हरदम
इश्क़ आशिक़ को पूछता ही नहीं
•••
(40)
भुलाया मुझे गर तो क्या पाइयेगा
ग़मे-इश्क़ में आप पछताइयेगा
हमारा गुज़र तो नहीं आपके बिन
अगर आपका हो चले जाइयेगा
ये चाहत, ये राहत, मुहब्बत की दुनिया
इसे छोड़कर आप पछताइयेगा
रक़ीबों से रक्खें भले आप रिश्ते
मुहब्बत मगर हमसे फ़रमाइयेगा
गिराकर उठाना ये पर्दा हया का
महावीर क्यों होश में आइयेगा
•••
(41)
मैं ग़ज़ल खूब कहता हूँ सुन लीजिये
ख़्वाब आँखों में कोई तो बुन लीजिये
इन ग़मों में ही गुम है घड़ी खुशनुमा
होंगी दुश्वारियाँ किन्तु चुन लीजिये
ज़ख़्म कैसे भी हों यार भर जायेंगे
कोई हल इन दुखों का जो चुन लीजिये
अब अकेले गुज़ारा भी दुश्वार है
हमसफ़र आज कोई तो चुन लीजिये
जिसपे ये सारा आलम थिरकने लगे
इस ग़ज़ल के लिए चुन वो धुन लीजिये
•••
(42)
प्यार में ये दिल दिवाना हो गया
इश्क़ का मौसम सुहाना हो गया
टूटकर दिल तक नहीं पहुँचा मिरे
आपका खंज़र पुराना हो गया
बाज़ आता है शरारत से कहाँ
हुस्न तेरा क़ातिलाना हो गया
प्यार की खुशबू में डूबा इश्क़ जो
दिल बड़ा ही आशिक़ाना हो गया
चाँदनी का नूर है तुझ में भरा
रौशनी का मैं दिवाना हो गया
•••
(43)
दिल मिरा आपका पुजारी है
पालकी फूलों से सँवारी है
जिस घड़ी तुम जुदा हुये मुझसे
एक लम्हा सदी पे भारी है
ना यक़ीं हो तो आज़मा लेना
तू मुझे जान से भी प्यारी है
इश्क़ मुझसे नहीं था तो बता दे
दिल में तस्वीर क्यूँ उतारी है
जीत लूँगा तुझे ज़माने से
दिल मिरा इश्क़ का जुँआरी है
•••
(44)
दर्दे-उल्फ़त का सिला पाया है
दिल दुआओं से भरा पाया है
चोट जो गहरी हुई है इश्क़ में
खूब आशिक़ ने मज़ा पाया है
नफ़रतों की बात कहके किसने
फिर मुहब्बत का सिला पाया है
इश्क़ के मैदान में दिल तो क्या
हाँ कलेजा भी छिला पाया है
शा’इरी में जी के तेरी नफ़रत
खूब मैंने भी मज़ा पाया है
•••
(45)
इश्क़ में दिल को जलाया है
यूँ उजाला रास आया है
खुद नहीं आया यहाँ पे मैं
तेरा जादू खींच लाया है
था यही दस्तूरे-महफ़िल भी
खुदको खोया, उनको पाया है
जीते जी कुछ नेकियाँ कर ले
फिर दुबारा कौन आया है
मीरो-ग़ालिब को पढ़ा मैंने
ये हुनर तब जाके आया है
•••
(46)
हिज़्र में जीना सज़ा है
चाँदनी भी बेवफ़ा है
साथ उनके रौनकें थीं
अब हँसी भी बेमज़ा है
अब नहीं चढ़ता नशा भी
हिज़्र में पीना सज़ा है
अब बग़ीचे में भी दिलबर
वो नहीं बाद-ए-सबा है
ज़िन्दगी है, तीरगी अब
रौशनी तो खुद क़ज़ा है
दिल के कोरे काग़ज़ों पर
आँसुओं ने ग़म लिखा है
मौत की भी हैसियत क्या
ज़िन्दगी है, तो क़ज़ा है
•••
(47)
यूँ न देखो मुझे खुदारा तुम
मेरी आँखों का हो सितारा तुम
पास आओ ज़रा कि दिल बहले
दूर से करते हो नज़ारा तुम
और कुछ देर तक करो बातें
मत करो जाने का इशारा तुम
रूठ जाओ तो जान दे दें अभी
हो मिरे जीने का सहारा तुम
घर चलो जी, यूँ रूठना छोड़ो
मत करो मुझसे यूँ किनारा तुम
•••
(48)
मुस्कुरा दे और कुछ मतलब नहीं
तुझपे आया दिल मिरा बे-सबब नहीं
कह रही ऑंखें जो लब से बोल दो
है नज़र ख़ामोश लेकिन लब नहीं
कर न बैठूँ ख़ुदकुशी तन्हाई में
ज़िन्दगी का कोई मक़सद अब नहीं
ज़ात क्या है, धर्म क्या है, पूछ मत
इश्क़ करने वाले का मज़हब नहीं
हर घड़ी सांसों में थे तुम ही बसे
दिलरुबा तुम याद आये कब नहीं
•••
(49)
घड़ीभर पास मेरे आ, मुस्कुरा
नज़र से दूर अब ना जा, मुस्कुरा
बता दे आज दिल में क्या है तेरे
करूँगा मैं उसे पूरा, मुस्कुरा
निगाहें यार से जो टकरा गईं
खिला दिल में कोई गुन्चा, मुस्कुरा
कि जाये जान भी अब तो ग़म नहीं
मिला हमदम कोई तुम सा, मुस्कुरा
वफ़ा है पाक इतनी मैं क्या कहूँ
लगूँ क्यों मैं उसे रब सा, मुस्कुरा
•••
(50)
आपकी महफ़िल में बैठा हूँ मैं
कौन कहता है कि तन्हा हूँ मैं
किसलिए ये दूरियाँ हैं बीच में
बेवफ़ा क्या तुमको दिखता हूँ मैं
ज़ख़्म कितने ही उभर आते हैं
इक ठहाका जब लगाता हूँ मैं
मुस्कुराता हूँ सभी के आगे
इसलिए की ग़म छिपाता हूँ मैं
हुस्न के मन्दिर की देवी हो तुम
इसलिए भी सिर झुकाता हूँ मैं
•••
(51)
तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है
दिवाना बिन पिए ही झूमता है
नहीं मुमकिन मिलन अब दोस्तो से
महब्ब्त में बशर तनहा हुआ है
करूँ क्या ज़िक्र मैं ख़ामोशियों का
यहाँ तो वक़्त भी थम-सा गया है
भले ही ख़ूबसूरत है हक़ीक़त
तसव्वुर का नशा लेकिन जुदा है
अभी तक दूरियाँ हैं बीच अपने
भले ही मुझसे अब वो आशना है
हमेशा क्यों ग़लत कहते सही को
“ज़माने में यही होता रहा है”
गुजर अब साथ भी मुमकिन कहाँ था
मैं उसको वो मुझे पहचानता है
गिरी बिजली नशेमन पर हमारे
न रोया कोई कैसा हादिसा है
बलन्दी नाचती है सर पे चढ़के
कहाँ वो मेरी जानिब देखता है
हमेशा गुनगुनाता हूँ बहर में
ग़ज़ल का शौक़ बचपन से रहा है
जिसे कल ग़ैर समझे थे वही अब
रगे-जां में हमारी आ बसा है
•••