इंसान कहां है?
राम-रहीम तो
ठीक है लेकिन
काम कहां है?
हमारे खून
और पसीने का
दाम कहां है?
तुम बाभन,
मैं दलित,
यह आदिवासी,
वह पिछड़ा
इस जाति-वर्ण की
भीड़ में
इंसान कहां है?
Shekhar Chandra Mitra
राम-रहीम तो
ठीक है लेकिन
काम कहां है?
हमारे खून
और पसीने का
दाम कहां है?
तुम बाभन,
मैं दलित,
यह आदिवासी,
वह पिछड़ा
इस जाति-वर्ण की
भीड़ में
इंसान कहां है?
Shekhar Chandra Mitra