इंतजार
इंतजार
रोज की तरह ही आज भी पक्षी चहचहा रहे थे और सूरज भी रोज़ की तरह ही निकला। परंतु साधना के लिए आज का दिन कभी न भूलने वाला हो गया। बड़े नाज़ो से पाला था बेटे को। लोगों के घरों में बर्तन मांज कर बेटे की हर ख्वाहिश को पूरा किया था उसने।
आज उठते ही रघु अपनी मां के पास गया और बोला ,”मां अब मैं और रंजू दोनों ही शहर में रहेंगे। मैं वहां अकेला नहीं रह सकता। कंपनी का फ्लैट भी बहुत बड़ा है । समय आने पर मैं तुमको भी शहर ले जाऊंगा।
मां ने निशब्द मुस्कुराकर दोनों को विदा कर दिया। देर तक निहारती रही गांव की छोर से दोनों को जाते हुए । बचपन से आज तक ममत्व के सभी दृश्यों की उछालों को अपने हृदय में समेटे, भारी मन, फिर घर लौट आई।
तब से लेकर आज तक मां गांव के उसी छोर पर बैठ रोज देर शाम तक बेटे का इंतजार करती है । बस इसी तरह रोज़, हर रोज़ उसकी उम्र ढलती है।