इंतजार की घड़ियां
इंतजार की
घड़ियां
खत्म ही नहीं हो रही
जब तक तुम आओगे
मेरे पास
मैं तो अंदर अंदर
भीतर भीतर से
घुल घुलकर
पिघल चुकी होंगी
एक ठोस आकार से
एक तरल पदार्थ में बदल
चुकी होंगी
तुम मुझे फिर कैसे
पहचानोगे
मैं तो राख के एक शोले से
अपना रूप बदलकर
एक आग का दरिया बन चुकी
होंगी।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001