आ रही है शा’इरी, मेरी ज़ुबाँ पे बारहा
आ रही है शा’इरी, मेरी ज़ुबाँ पे बारहा
देखना ये बात जाएगी कहाँ पे बारहा
थे पुराने जन्म-जन्मों के कोई ये सिलसिले
क़हर ये टूटे हैं वरना, क्यों यहाँ पे बारहा
रू-ब-रू होंगी मिरे ये, बेवफ़ा सच्चाइयाँ
अश्क़ छलकेंगे तिरे ही, आस्ताँ पे बारहा
हो मदारी या तवायफ़, पेट भरने की लिए
हर तमाशा अंत तक, होता यहाँ पे बारहा
इक घड़ी भर आएगी बस, मौत रूपी दिलरुबा
ये मिलेगी फिर नहीं, हमको यहाँ पे बारहा