आ रहा हूँ मैं
गर शक है मुझ पर की कहाँ जा रहा हूँ मैं,
थोडा सब्र रख ले जिंदगी बस आ रहा हूँ मैं।
चला था समंदर पार करने मैं,
ज्वार भाटा में ऐसा फँसा की तैर भी नहीं प् रहा हूँ मैं।
किनारा दिख रहा है मुझको,उस तक मई जरूर पहुंचुंगा बस यही सोच कर मुस्कुरा रहा हूँ मैं।
थोड़ा झुका थोडा असमंजस में जरूर हूँ पर हारा नहीं,
मेरी ही जीत होगी आखिर में, बस यही गीत गुनगुना रहा हूँ मैं।
थोड़ा वक़्त दे थोड़ा सब्र कर जिंदगी बस आ रहा हूँ मैं।