आज़ाद कर दो
परिंदों को आज़ाद कर दो
उन्हें हक़ है जीने का
मुझें नशा करना मत सिखाओ
आदत नही है पीने का ।
उनकी एड़िया घिस गयी
तुम्हारी परवरिश करते करते
तुम्हें ज़रा भी इल्म नही इन पसीने का।
मुझें आसान समझते हो
क्या नादानी है ये ?
तुम्हें शायद ढंग नही जीने का ।
जो पाया ही नही
इस जहां में यहा मोहब्बत कभी
उसे भला क्या पता किसी को खोने का ।
तुम ख़्वाब में भी अब नज़र नही आते
फ़िर क्या फ़ायदा मुझें सोने का ।
छोड़ गए होंगे कबका उन्हें तो वो
बेमतलब भला फिर क्यों रोने का ।
ख़ुद ही जिम्मेदार हु इस वक़्त के लिए
क्या जरूरत थी भला ऐसे बीज बोने का ।
-हसीब अनवर