आज़ादी कैसे मनाये
गांव शहर बनता गया,
शहर पत्थरो से घिरता गया,
आज़ादी कैसे मनाये,
गौरैयों का आशियाँ उजड़ता गया,
संस्कृतियां किताबो की
मोहताज बनती गई
अपनापन खालीपन में बदलने लगा
आज़ादी कैसे मनाये
परिवार टुकड़ो में बँटता गया
पढ़े लिखे हो गए अब तो हम
अब जीन्स सूट टाई पहनते है
भीतर खोखले होते गए
आज़ादी कैसे मनाये
परपंरा का पहनावा छूटता गया
समानता का अधिकार मिला
देश मंगल तक हो आया
बेटियां कोख में मरती रही
आज़ादी कैसे मनाये
पँख हर पल कटता गया