आग़ाज़
आजकल यह क्या हो गया है ?
आदमी क्या कठपुतली या जमूरा बन गया है ?
जो अपने आकाओं के इशारों पर
नाचता फिर रहा है ,
खुदगर्ज़ी में डूबा हुआ ,
ईमान को दांव पर लगाकर ,
अपने ज़मीर को बेचकर,
अपना उल्लू सीधा कर रहा है ,
झूठ ,फ़रेब , साज़िशों का सहारा लेकर,
‘अज़ाब के दलदल में फंसता जा रहा है ,
अपनों की फ़िक्र नहीं ,
दानिश – मंदी की क़द्र नहीं ,
जुनून -ए-वहश़ियत ज़ेहन पे तारी है ,
हैवानियत सर चढ़कर बोल रही,
इंसानियत पे भारी है ,
लगता है अब क़यामत के दिन
नज़दीक आ गए हैं ,
जब इंसां के मुखौटे में छिपे हैवान,
इंसानियत को मिटा कर ही दम लेंगे।