आख़िर भय क्यों ?
मौत के तांडव से आख़िर भय क्यों ?
जिंदा इंसान कब था मरे से भय क्यों ?
क्या मौत आने से ही मरता इंसान ?
फिर आज ग़म-ग़मगीन इंसान क्यों है ?
कितने ही क्यों छिपे बैठे दिल कोने में
आख़िर इंसान जिंदा है तो क्यों ?
बडा अजीब जानवर है इंसान
आख़िर जानवर हो इंसान क्यों है ?
कहते है इंसानो की सोहबत में
जानवर भी इंसान बन रहता है ।
इंसान किस जानवर की सोहबत पा
खो इंसानियत जानवर बना आज ।
मौत के तांडव से आख़िर भय क्यों ?
जिंदा इंसान कब था मरे से भय क्यों ?
क्या मौत आने से ही मरता इंसान ?
फिर आज ग़म-ग़मगीन इंसान क्यों है ?
डर मत डगर पर चलाचल छल मत
न अपने को ना अपनों को भला ।
मौत से क्या डरना मरकर अमर बन
हो पार नाव चढ़ थाम पतवार घर अपने।
उत्सव मना चल उस ओर चल
आनन्दमग्न भग्न आशायें मत कर ।
मौत के तांडव से आख़िर भय क्यों ?
जिंदा इंसान कब था मरे से भय क्यों ?
क्या मौत आने से ही मरता इंसान ?
फिर आज ग़म-ग़मगीन इंसान क्यों है ?
?मधुप बैरागी