“आह्वान हिन्दी का “
आओ भारत वासी आओ, माँ की करुण पुकार सुनो।
हिन्द देश के हिन्दुस्तानी, हिन्दी का आह्वान सुनो।
बुला रही है तुम्हें तुम्हारी, मातृभाषा पुकार कर।
कि मेरे बेटों मेरे घर में, मेरा भी उद्धार कर।
अरे सपूतों अपनी माँ का, भी कर लो कुछ ध्यान सुनो।
हिन्द देश के हिन्दुस्तानी, हिन्दी का आह्वान सुनो।
अपने ही गृह नगर में, अपनी धरती में वह धुमिल हुई।
औरों को सब कुछ बनवा कर, खुद गैरों में शामिल हुई।
आज स्वयं की ही पहचान खुद, ढूंढ रही प्यारी हिन्दी।
जबकि उसको होना था, भारत माँ के मस्तक की बिन्दी।
यह ले लो संकल्प, कहीं न हिन्दी का अपमान सुनो।
हिन्द देश के हिन्दुस्तानी, हिन्दी का आह्वान सुनो।
आओ प्यारे भारत वासियों, अपनी मातृभाषा के पास।
उसे उसका स्थान दिलाओ, जिसकी कर रही वह कब से आस।
हमें प्रतिज्ञा करनी होगी, यदि करते हम मातृभाषा से प्यार।
वह अधिकार दिलाना होगा, जिसकी है वह असली हकदार।
करो कुछ ऐसे जतन कि, विश्व में हिन्दी का यशगान सुनो।
हिन्द देश के हिन्दुस्तानी, हिन्दी का आह्वान सुनो।
माँ का जो स्थान है गृह में, वह कहलाता है सर्वोच्च।
हिन्दी हमारी मातृभाषा, स्थान है उसका सबसे उच्च।
—- रंजना माथुर दिनांक 14/09/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)
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