आहत मन !
कल रात की ही तो है बात,
झांसी में जो घटित हुआ रात,
लील गया बच्चों का बचपन,
जिनका शुरु होना था अभी जीवन,
अग्नि कांड ने जिन्हें छीन लिया,
अपनों को अपनों से ही,
कर गये आहत सबके मन!
ये थोड़ी सी ही लापरवाही है,
या अपने दायित्वों से बच कर निकलने की तैयारी है,
कर्तव्यों के निर्वहन की हीला हवाली है!
जहाँ सुरक्षा के उपाय ही ,
विध्वंस का कारण बन गये,
निकम्मे पन की पराकाष्ठा हैं लिए हुए,
हादसे को आमंत्रण दे रहे,!
और हमारे रहनुमाओं की क्या कहें,
लीपा पोती में हैं लगे हुए,
कुछ टके मुआवजे के घोषित किए,
और चुनाव प्रचार को चले गए,
हां,जांच रिपोर्ट को कह गये,
बारह घंटे में तलब किए!
परिजन दर दर भटक गये,
अपने मासूमों को तरस गये,
नहीं मालूम, हैं भी या नहीं रहे,
अपनी पीडा कहैं किससे!
बस रश्म अदायगी होती है,
आहत मन को कौन धैर्य धरै,
कुछ दिनों की मातम परसी है,
कुछ दिनों तक चर्चा चलती है,
फिर और घटित हो जाएगा,
परिदृश्य सभी का बदल जाएगा,
ऐसा ही होता आया है,
ऐसा ही होता जाएगा!
जनता को बहला फुसला कर,
फिर सत्ता का सुख मिल जाऐगा!!