आस्था
ये दिल मांगता है जिससे दुआ ,
क्या उस तक पहुंचेगी मेरी सदा ?
उसकी हस्ती है कहां ?
मैं उसे ढूंढू ज़मीं में ,
या फिर आसमां में ,
वो बसता है कहां ?
मंदिर का भगवान मौन है ,
मनमंदिर भी अब निशब्द है ,
आत्मज्ञान को हृदय व्यथित है ,
पर विश्वास उसके अस्तित्व पर अटल है ,
स्वप्न पथ पर बहती अश्रु निर्झर धारा ,
कभी त्रास के अंधकार में विलुप्त होती ,
कभी संबंध की किरण बन ,
नवआयामों में उद् भव होती ,
इस जगत के तम में नवआशाओं के
दीप प्रज्वलित कर ,
नवजीवन प्रकाश फैलाती ।