आस्था विश्वास और प्रतिफल
मेरे एक साथी चिकित्सक ने सवाल किया,
छोटे अबोध बच्चों में तो यह सब आस्था/विश्वास जैसी कोई चीज नहीं होती,
फिर भी लोग कहते है, फलाँ चिकित्सक वा मुझ से उनके बच्चे ठीक नहीं होते, और बाकी सब ठीक हो जाते है,
मेरा जवाब सुनकर मेरा साथी तर्क करने लगा.
मैंने कहा जब तक किसी भी जीव को पूरा बोध नहीं होता , पालन-पोषण की जिम्मेदारी किसकी है.
उसने कहा माता-पिता और अभिभावक की होती है.
उसने प्रश्न दागा,
कैसे
मैंने कहा दवा ले जाते समय संरक्षक जो भाव रखते हैं
उसी भाव मंशा से दवा देते है.
उसी प्रकार नहीं देते.
जिन भावों से वे भोजन और परवरिश करते हैं.
मंदिर में क्या है भगवान नामक पत्थर
जिसके सारे काम हम खुद करते है.
न की वो स्वयं .
फिर भी लोग अपनी चेतना जागृति से क्रियान्वयन करते रहते है,
मनन करते है.