Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Oct 2022 · 5 min read

आस्तीक -भाग पांच

आस्तीक – भाग पांच

अशोक कि शिक्षा के विषय मे परिवार को चिंता होने लगी एकाएक पण्डित छोटे बाबा उमाशंकर मणि त्रिपाठी एक दिन दोपहर को सोकर उठे लगभग दिन के 3 बजे थे बोले अशोक चलो आज तुम्हारा नाम लिखवा देते है

उस समय गांव के पड़ोस गांव में प्राइमरी स्कूल था जहां मुझे लेकर थोड़ी ही देर में पहुँच गए वहां पहुँचने पर प्रधानाध्यापक ने बड़े आदर सम्मान से उनका स्वागत किया प्रधानाध्यापक ने पूछा कि पण्डित जी आप अपने साथ अपने पोते को साथ ले आये है कोई खास बात छोटका बाबा बोले हा मास्टर साहब आज अशोक का एडममिशन कराना है।

प्रधानाध्यापक ने तुरंत ही एडमिशन फार्म दे दिया एव भरने के आवश्यक निर्देश देते हुए फार्म फरवाया और एडमिशन हो गया एडममिशन के बाद बाबा के संग हम घर वापस लौट आये।

दूसरे दिन से मुझे पाठशाला जाना शुरू हो गया ,सुबह नौ बजे पाठशाला जाना डेढ़ बजे इंटरवल में घर आना खाना खा कर फिर दूसरी पाली में पाठशाला जाना यही नियमित दिन चर्या हो गयी।

शाम को छोटका बाबा (छोटे बाबा)संस्कृति के श्लोक रटाते आज भी उनके द्वारा रटाये संस्कृत के श्लोक भली भांति स्मरण है।

पाठशाला के प्रधानाचार्य बहुत अनुशासन प्रिय एव शिक्षा कि संस्कृति संस्कार के मामले में कठोर एवं शक्त थे जब भी वह होते किसी बच्चे कि आवाज नही आती पाठशाला के बच्चों ने उनका उपनाम उनकी शक्त संस्कृति के कारण रखा था पतुकी (मिट्टी का भगौने आकार का बर्तन) प्रधानाचार्य जब भी आते बच्चे कहते बतुकी आ गए और चौतरफा शांति छा जाती ।

अशोक ने जिज्ञासा से एक बच्चे से पूछ ही लिया कि हेडमास्टर साहब का नाम पतुकी क्यो कहते है बच्चों ने बताया कि हेडमास्टर साहब कुम्हार जाती के है बताने वाला सहपाठी स्वयं ही राजभर था बचपन मे ही जाती विद्वेष कि परम्परा भारतीय समाज मे अशोक ने सामाजिक विरासत के रूप में पाई ।

जबकि देश को स्वतंत्र हुये मात्र तीस वर्ष ही बीते थे और देश विखंडित हो द्विराष्ट्रवाद के सिंद्धान्त के आधार पर स्वतन्त्र हुआ था एवं स्वतंत्रता के संग्राम में सभी वर्गो के लोगों ने अपनी सम्पूर्ण क्षमता से हिस्सेदारी निभाई थी।

गर्मी में पाठशाला प्रातः सात बजे से एक बजे तक चलता था ।

जिस वर्ष आम कि फसल अच्छी होने की संभावना होती उस वर्ष गर्मियों कि छुट्टियों का इंतजार रहता विद्यालय से छुट्टी होते ही सीधे बारी( बगीचा) में जाकर तेज हवाओं में गिरते कच्चे आम बीनना ज़िसे स्थानीय भाषा मे टिकोरा कहते है अच्छा लगता कभी कभी पूरा दिन ही खाने पीने की चिंता छोड़ बारी में बीत जाता ।

जब स्वाति नक्षत्र कि वर्षा होती तो रात को मिट्टी के बर्तन का लालटेन बनाकर उसके लौ में आम बीनना एक अलग ही मजा था जो गांव के बचपन का अपना अलग आनंद था।

एक बार गर्मी के दिनों में विद्यालय से छूटने के बाद अशोक एव नसीर तथा गांव के ही प्रधान का लड़का आनंदी सीधे दोपहर में बारी पहुंचे जहां एक घेराई (आम का गोल बगीचा) था जहाँ तोतो ने घोषला बनाया था और अंडे दे रखे थे जिसमे से बच्चे निकल चुके थे नसीर घेराई के सबसे ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया जहां तोतो के घोषले थे और आम के पेड़ कि डाली पर बने डाली के अंदर घोषले में बिना किसी भय के हाथ डाल दिया भय इसलियें कि डाली के अंदर बने घोसलों में अक्सर सांप भी रहते जो तोते के बच्चों को निगल जाते लेकिन नसीर सभी भय से निडर घोषले से तोते निकलने लगा एक एक करके उसने तीन तोते के बच्चे निकाले एक अपने लिए एक आनंदी के लिये एक मेरे लिए ।

अशोक एव दोनों साथी अपना अपना तोता लेकर अपने अपने घर चले आये अशोक जब तोता लेकर घर पहुंचा तब उसके घर के बड़े बुजुर्ग बहुत क्रोधित हुए और उसे बहुत फटकार लगाई अंत मे दुःखी होकर अशोक ने अपना तोता प्रधान लक्ष्मी शाह के घर जाकर आनंदी को दे दिया।

बचपन वास्तव में दुनियादारी भेद भाव एव अन्य सामाजिक विद्वेष से बहुत दूर यही समझता है कि यही जीवन है उंसे जरा भी आभास नही होता कि जो उसके अग्रज है बाबा ,पिता ,माता वो भी कभी बचपन की दुनियां शरारतों से गुजर चुके है यह भी आभास नहीं होता कि कभी वे भी माता पिता एवं बाबा कि तरह जिम्मेदार जवान एवं बूढ़े होंगे।

अशोक के पाठशाला में कुछ लड़कियां भी पढ़ती थी उन्ही चंद लड़कियों में एक थी निर्मला बेहद खूबसूरत एवं चंचल कुशाग्र बचपन मे दुनियां दारी कि किसी भी बच्चे को समझ नही होती है यह सार्वजनिक सत्य है ।

आम की फसल उस वर्ष बहुत अच्छी थी गर्मियों का मौसम आ चुका था पाठशाला में गर्मियों के लिए अवकाश होने ही वाला था सुबह सात बजे से पाठशाला लगती और एक बजे समाप्त हो जाती एक दिन अशोक अकेले ही पाठशाला से छूटते ही सीधे बारी पहुंच गया वहाँ उसकी सहपाठी निर्मला पहले से मौजूद थी दोनों में कभी बोल चाल नही थी शनिवार का दिन बेहद गर्मी लू अंधड़ के साथ चल रही थी तभी एक आम पेड़ से गिरा उंसे उठाने अशोक दौड़ा और निर्माला भी दोनों आम के निकट पहुंच कर आपस मे टकरा गए परिणाम स्वरूप निर्मला संभलते संभलते दूसरे आम के पेड़ के जड़ से जा टकराई कोई चोट नही आई ना ही आने की संभावना थी क्योंकि बहुत हल्के से दोनों कि टकराहट हुई थी ।

आम निर्मला ले गयी अशोक शाम तक बारी में रहने के बाद घर लौट आया शाम को छोटका बाबा के साथ संस्कृति के श्लोक रटे सो गया सुबह देर तक सोता रहा छुट्टी रविवार का दिन घर वालो ने उसे डांटते हुये जगाया और कहा तुम इतने गंदे और जपाट (जाहिल का देशी संस्करण) हो जाओगे तुमने तो पण्डित जी के खानदान कि नाक कटा दी उठो देखो परासी से निर्मला आयी है तुम्हारी शिकायत लेकर मैं उठा आंख मलते हुये देखा तो वह कोला (घर के पीछे का दरवाजा) पर खड़ी रो रही थी अशोक ने पूछा क्यो आयी हो वह बोली काल तू हमे गरियवले रहल बारी में घर वाले लगे पूछने क्या गाली दिया था वह बस यही कहती बतावे लायक नईखे घर वाले समझे अशोक ने कोई अनाप सनाप हरकत कर दी है निर्मला रोये जा रही है अशोक को बहुत फटकार मिली जिसके कारण उसे शर्मिंदगी और बेइज्जती महसूस हुई बचपन मे बात बात सम्मान् का प्रश्न होता है ।

किसी तरह से निर्मला को घर के बड़े बुजुर्गों ने समझाया चुप कराया एव वह चुप हुई एव उसे खाना खिला कर बड़े सम्मान के साथ बिदा किया अशोक घर वालो को मन ही मन कोषता रहा कि बिना बात के ही निर्मला को आसमान चढ़ा दिया ।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।

Language: Hindi
174 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all
You may also like:
प्यास
प्यास
sushil sarna
"कैसे कह दें"
Dr. Kishan tandon kranti
कोई हंस रहा है कोई रो रहा है 【निर्गुण भजन】
कोई हंस रहा है कोई रो रहा है 【निर्गुण भजन】
Khaimsingh Saini
निरन्तरता ही जीवन है चलते रहिए
निरन्तरता ही जीवन है चलते रहिए
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
दिल ये तो जानता हैं गुनाहगार कौन हैं,
दिल ये तो जानता हैं गुनाहगार कौन हैं,
Vishal babu (vishu)
यह अपना रिश्ता कभी होगा नहीं
यह अपना रिश्ता कभी होगा नहीं
gurudeenverma198
*स्वर्ग तुल्य सुन्दर सा है परिवार हमारा*
*स्वर्ग तुल्य सुन्दर सा है परिवार हमारा*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
ज्ञान~
ज्ञान~
दिनेश एल० "जैहिंद"
*गठरी धन की फेंक मुसाफिर, चलने की तैयारी है 【हिंदी गजल/गीतिक
*गठरी धन की फेंक मुसाफिर, चलने की तैयारी है 【हिंदी गजल/गीतिक
Ravi Prakash
"आत्म-मन्थन"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
मैं नहीं हो सका, आपका आदतन
मैं नहीं हो सका, आपका आदतन
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
"ଜୀବନ ସାର୍ଥକ କରିବା ପାଇଁ ସ୍ୱାଭାବିକ ହାର୍ଦିକ ସଂଘର୍ଷ ଅନିବାର୍ଯ।"
Sidhartha Mishra
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
SATPAL CHAUHAN
जब दादा जी घर आते थे
जब दादा जी घर आते थे
VINOD CHAUHAN
सच है, दुनिया हंसती है
सच है, दुनिया हंसती है
Saraswati Bajpai
💐प्रेम कौतुक-308💐
💐प्रेम कौतुक-308💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
तूफान आया और
तूफान आया और
Dr Manju Saini
* भोर समय की *
* भोर समय की *
surenderpal vaidya
#drarunkumarshastri
#drarunkumarshastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आवश्यकता पड़ने पर आपका सहयोग और समर्थन लेकर,आपकी ही बुराई कर
आवश्यकता पड़ने पर आपका सहयोग और समर्थन लेकर,आपकी ही बुराई कर
विमला महरिया मौज
😊 #हास्य_गीत-
😊 #हास्य_गीत-
*Author प्रणय प्रभात*
दिल की हक़ीक़त
दिल की हक़ीक़त
Dr fauzia Naseem shad
2704.*पूर्णिका*
2704.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बसंत पंचमी
बसंत पंचमी
नवीन जोशी 'नवल'
दो शे'र
दो शे'र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
पापियों के हाथ
पापियों के हाथ
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
तेरी जुस्तुजू
तेरी जुस्तुजू
Shyam Sundar Subramanian
नवयुग का भारत
नवयुग का भारत
AMRESH KUMAR VERMA
हर हर महादेव की गूंज है।
हर हर महादेव की गूंज है।
Neeraj Agarwal
दो जून की रोटी
दो जून की रोटी
Ram Krishan Rastogi
Loading...