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21 Oct 2022 · 5 min read

आस्तीक भाग -नौ

आस्तीक भाग – नौ

गांव के समाज मे न्यायालय थाना पुलिस बाज़ार मेला गवई राजनीति ग्रामीण जीवन समाज का महत्व पूर्ण अंग है।

जिसमे समय के साथ बदलाव होता रहता है अशोक का गांव रतनपुरा भी इससे अछूता नही है पहले गांव में दो तीन पक्के मकान शेष परिवारो के पास छोपड़िया थी अब छोपडी समाप्त हो चुकी है सबके अपने पक्के मकान है ।

खास बात यह है कि सवर्ण हो या दलित या पिछड़ा किसी ने किसी सरकारी आवास योजना या सरकारी सहायता से अपना मकान नही बनवाया है सभी ने अपने परिश्रम से ही मकान बनवाया है अशोक को बहुत आश्चर्य तब होता है जब सरकारी निर्मित आवासों एव सरकारी आवास योजना के लिए सरकारों द्वारा प्रचार प्रसार किया जाता है एव चाभी सौंपी जाती है तो किसको सौंपी जाती है अभी तक अशोक नही समझ पाया कि ऐसी योजनाओं के लाभार्थी कौन लोग होते है ।

भारत के हर गांव में दो चार मुकदमे दीवानी फौजदारी के रहते ही है अशोक का गांव भी अछूता नही था उज़के परिवार में एक किता (किता मतलब एक फाइल ) मुकदमा गांव के पड़ोस गांव के पण्डित सदा नंद कि कोई संतान नही थी अशोक के मझले बाबा के कहने पर पण्डित सदानंद ने राधा कृष्ण का मंदिर बनवाया और उस मंदिर को अपनी आठ एकड़ भूमि दान देकर उसका सर्वराकार अशोक के मझले बाबा को नियुक्त किया मझले बाबा के पास समयाभाव रहता था वे मंदिर पर बैठ नही सकते थे अशोक के बड़े चाचा चंडी मणि त्रिपाठी ने बृजबल्लभ दास को पुजारी चादर देकर नियुक्त कर दिया ।

कुछ वर्षों उपरांत बृजबल्लभ दास जो ठग और लोभी था ने सदानंद के त्याग निष्ठा के राधाकृष्ण के मंदिर पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया और जब इसकी भनक अशोक के परिवार वालो को लगी तब उसने कहा न्यायालय में जाईये उसके इस तरह आचरण के पीछे पण्डित सदानंद मिश्र के पट्टीदारों का सह था ।

जिससे उसकी हिम्मत बढ़ गयी सदानंद के पट्टीदार नही चाहते थे कि अशोक का परिवार किसी तरह से उनके परिवार के द्वारा बनवाये मंदिर का स्वामित्व पा सके इसमें राम रुचि मिश्र जी अग्रणी थे यही एक मुकदमा अशोक के छोटे बाबा लड़ते थे राधा कृष्ण बनाम बृजबल्लभ दास मु.न.1172/1961।

गांव के दूसरे विवाद जो दो मल्लाह परिवारो के मध्य था रामधारी मल्लाह बनाम यदुनाथ चूंकि रामधारी कमजोर थे आर्थिक रूप से अतः उसकी पैरवी गांव के प्रधान लक्ष्मी साह की मदद से करते एक तरह से रामधारी का भी मुकदमा अशोक छोटे बाबा के लिए अपने मुकदमे से कम महत्त्वपूर्ण नही था ।

दीवानी के मुकदमे पीढ़ी दर पीढ़ी मुकदमा चलता रहता है स्थानीय न्यायलय से लेकर देश की सर्वोच्च न्यायलय तक लेकिन नतीजा निकलना सम्भव बहुत कम हो पाता है।

अशोक के छोटे बाबा कि रामधारी मल्लाह के पक्ष में पैरवी करने के कारण यदुनाथ मल्लाह का परिवार अशोक के परिवार को अपना शत्रु मनाता था ।

एक दिन अशोक के बुआ के श्वसुर पण्डित मंगल मिश्र आये हुये थे उनके स्वागत में अशोक का पूरा परिवार एक पैर पर खड़ा था मंगला बाबा नकचढ़े एव क्रोधी व्यक्ति थे दुर्वासा से भी अधिक क्रोधी बात बात पर उनकी भृगुटी डेढ़ी रहती अतः अशोक का परिवार उनकी आओ भगत में किसी तरह कि कोर कसर नही रखना चाह रहा था।

रात्रि के लगभग आठ बजे थे मई का महीना प्रचंड गर्मी अशोक कि उम्र लगभग चार साढ़े चार वर्ष रही होगी वह भी घर के दरवाजे पर बड़े बुजुर्गों के साथ बैठा था एक एक शोर मचा आग लग गयी आग लग गयी और जदुनाथ कि झोपड़िया धु धु कर जलने लगी।

जो जहाँ था वही से यदुनाथ के घर लगे आग को बुझाने के लिये चल दिया पूरे गांव की एक जुटाता एव मसक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका ।

यदुनाथ खुराफाती किस्म का आदमी एक तो कमजोर रामधारी को परेशान करता और भय का वातावरण बनाता ऐसे में उसके घर लगी आग ने पूरे गांव में आग लगा दिया सच्चाई यह थी कि उसके घर लगी आग एक सामयिक घटना थी उस समय गेहूं कि दवरी बैलों से होती थी गेंहू की फसले काटी जा चुकी थी कुछ पैर की दवरी बैलों से चल भी रही थी किसी के द्वारा बीड़ी पीने के बाद अधजली बीड़ी फेक दी गयी जो तेज हवा में यदुनाथ कि मड़ई कि तरफ गयी और भयंकर आग का कारण बनी ।

इस सच्चाई को जानते हुये भी यदुनाथ ने धारा 379 के अंतर्गत लार थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई जिसमे उसने अशोक के छोटका बाबा को नामजद मुजरिम बनाया यह बात झूठ एव अशोक के परिवार को जानबूझकर परेशान करने की नीयत का यदुनाथ घड़यन्त्र था यह सही था कि यदुनाथ के परिवार का नुकसान बहुत हुआ जिसके कारण सभी को सहानुभूति थी मगर उसने अपने कृत्य से ही खुद गिरा लिया थानेदार महोदय तपतिस के लिए आये और सच्चाई का पता किया सच्चाई जाजने के बाद उन्होंने यदुनाथ को गांववासियों के समक्ष बहुत जलील किया और उनके प्राथमिकी में फाइनल रिपोर्ट लगाया ।

इधर अशोक के घरेलू मुकदमे में एक तो उसका परिवार दावेदार था तो राम रुचि मिश्र एव बृजबल्लभ दास विरोधी पक्ष थे रामरुचि मिश्र की सिर्फ जिद्द इतनी की मंदिर एव जमीन उनके परिवार की है उन्हें मिलनी चाहिए उनके जिद्द ने अप्रत्यक्ष तौर पर धूर्त पाखंडी बृजबल्लभ दास उर्फ मौनी को सहयोग प्रदान किया जिसके कारण वह मजबूत होता गया उसने सर्वप्रथम मंदिर में स्थापित अष्टधातु कि बहुमूल्य राधाकृष्ण मूर्ति को चोरी छिपे बेंच दिया और इलाके में मूर्ति चोरी का ढ़िढोरा पिट दिया मूर्तियों के गायब होने की प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई साथ ही साथ ऐसे कृत्यों को अंजाम दिया जाने लगा जैसे परासी चकलाल उसकी पुस्तैनी विरासत है एव उसके बाप ने उसे उसकी विरासत का उत्तराधिकारी नियुक्त किया है।

वर्तमान में सदानंद मिश्र कि श्रद्धा का देवालय आज स्वर्गीय बृजवल्लभ दास के पीढ़ियों का आवास एवं उनकी आठ एकड़ जमीन उनकी बपौती बन चुकी है अशोक को आज भी यह नहीं समझ पाया कि सदानंद मिश्र की विरासत के मन्दिर की वर्तमान दशा पर सदानंद के पट्टीदारों एवं गांव वालो को शर्म आती है या नहीं यदि नहीं आती है तो निश्चय ही ग्राम वासी निर्ल्लज्जता कि हर मर्यादा को लांघ चुके है यही सत्य है।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।

Language: Hindi
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