आस्तीक भाग-चार
आस्तीक – भाग चार
तीन तरफ से नदी ताल से घिरा उत्तर प्रदेश का आखिरी गांव पूर्वांचल के देवरिया जनपद का आखिरी छोर छोटी गंडक के बाढ़ का कहर लगभग हर साल कहावत है कि गांव कि भौगोलिक स्थिति लंका तरह है ।
हर साल गांव बरसात के मौसम में जलमग्न रहता और सिर्फ रबी कि फसल होती या कभी कभार मोटे अनाज बाजरा मक्का आदि ही मुख्य खेती था विकास का दूर दूर तक कोई लेना देना नही था इस गांव का ।
वर्ष उन्नीस सौ इकसठ भादों का महीना चारो तरफ भयंकर बाढ़ का प्रकोप गांव के हर घर मे बाढ़ का कहर दैनिक जीवन दुर्भर खाने पीने सौच आदि कि किल्लत खाना बनाने के लिये ईंधन का अभाव यानी अभाव एव संघर्ष में गांव के लोंगो का जीवन व्यतीत होता।
गांव में सिर्फ एक ही परिवार ब्राह्मण का रहता है बाकी गांव में पिछड़े एव अल्पसंख्यक अनुसूचित जाति के परिवार ही अत्यधिक है ग्यारह सितंबर उन्नीस सौ इकसठ पण्डित उमाशंकर जी बहुत परेशान थे उनके बड़े भाई कि छोटी बहु प्रसव पीड़ा से कराह रही थी प्रसव का समय भी पूर्ण नही हुआ था सातवां माह ही चल रहा था कृष्णजन्माष्टमी दिन रविवार दिन पौ फटने को था और बहु मध्य रात्रि से प्रसंव पीड़ा में कराहती रही बहु कि हालत देख पण्डित जी बहुत परेशान थे करे भी तो क्या स्वास्थ सेवाएं भी उपलब्ध नही थी और भयंकर बाढ़ का कहर जीवन दुर्भर था कही आने जाने के लिये नाव ही एक साधन जिसमे प्रसव पीड़ा कि वेदना से कराहती को ले जाना जान बूझ कर जोखिम को दावत देना था दिन में कुछ देर सूरज निकलने के बाद भयंकर बारिश शुरू जो रात के बाद कुछ घण्टो के लिए बंद थी पण्डित जी आनन फानन गांव के डोमिन जो ऐसे मामलों में अधिक कारगर मानी जाती थी को बुलाया वह भी अपनी जानकारी के अनुसार कार्य कर रही थी सुबह की वारिस बाढ़ कि विभीषिका में दुर्भर जीवन इसमें समस्या जिसका कोई हल नही पण्डित जी एव परिवार के सदस्य भगवान के भरोसे ही समय का इंतज़ार कर रहे थे लगभग दस बजे सुबह डोमिन बाहर निकली और बताया कि दुलहिन ने लड़के को जन्म दिया है जो समय से पूर्व जनमने के कारण बहुत कमजोर है एव बच जाए तो सौ साल जियेगा एकरे खातिर पांच बारिश बहुत देख रेख करेके पड़ी।
पण्डित जी एव पूरा परिवार प्राकृतिक ट्रादसी में रात भर जगा था सबके चेहरे पर खुशियां छा गयी और थाली पीटकर खुशी का इज़हार किया डोमिन पूरे गांव के हालात से परिचित थी वह मांग भी क्या सकती थी जो भी पण्डित जी ने दिया बहुत खुशी से लेकर अपना निश्छल आशीर्वाद देती चली गयी।
पण्डित जी के घर लड़के के जन्म कि खुशी में छठ्ठी बरही कि रस्म औपचारिकता कि तरह पूरी हुई माँ सरस्वती भी पुत्र रत्न कि प्राप्ति से खुश थी और जितना भी सीमित संसाधन में संभव था अपने लाडले कि परिवरिश में कोई कोर कसर बाकी नही रखती धीरे धीरे बालक ने एक वर्ष पूर्ण किया प्यार से बच्चे का नाम परिवार में कोई अशोक बुलाता कोई नंद के लाल तो कोई बसुदेव का कृष्ण सबने अपनी अपनी भवनाओं और अपेक्षाओं के नाम दे रखे थे कोई स्थायी नाम नामकरण संस्कार के अन्तर्गरत नही रखा गया ।
बालक था भी आकर्षक सांवला गोल मटोल सबकी आंखों का दुलारा प्यारा समय के साथ बालक परिवार कि खुशियो के साथ बढ़ता जा रहा था पण्डित जी का परिवार गांव में हर मामले में अच्छा रसूख रखता था गांव में सात राजपूतों के परिवार भी है गांव कि कुल आबादी में मात्र आठ परिवार ही सवर्ण के नाम पर अब भी है।
धीरे धीरे बालक पांच साल का हुआ पंडित उमाशंकर तीन भाई थे सबसे बड़े भाई विश्वनाथ त्रिपाठी, दूसरे हंसः नाथ त्रिपाठी सबसे छोटे उमाशंकर मणि त्रिपाठी उमाशंकर जी कि कोई पुत्र नहीं था दो दो विवाह के बाद भी हंस नाथ मणि के दो पुत्र एक चंडी मणि, बसुदेव मणि,एवं बेटी सावित्री तथा विश्वनाथ मणि के एक बेटा भगवती मणि एक बेटी गिरिजा थे।
गांव का वातावरण भी कमाल का सौहार्द पूर्ण एव अनुकरणीय था मुस्लिम के पर्व पर हिन्दू एव हिंदुओ के पर्व पर मुस्लिम बिना भेद भाव के सम्मिलित होते पूरे गांव में एक मात्र ब्राह्मण परिवार होने के कारण पूरे गांव वाले परिवार के प्रत्येक सदस्य कि बहुत इज़्ज़त करते थे गांव में किसी के परिवार में कोई भी मांगलिक कार्य होता सर्व प्रथम पण्डित जी के चौखट कि पूजा होती मुहर्रम का ताजिया पण्डित जी के दरवाजे से निकलता पण्डित जी कि यजमानी भी आस पास के गांवों में थी होली की का शुभारंभ वसंत हो या कोई भी कार्य पण्डित जी के दरवाजे से ही शुरू होता इसे लोंगो कि श्रद्धा आस्था कहे एक मात्र ब्राह्मण परिवार के श्रद्धा ।
पंडित जी के परिवार का रसूख क्योकि यह भी सच था कि उस दौर में गाँव खासकर सवर्णों में पण्डित जी का ही परिवार सक्षम सम्पन्न जमाने के अनुसार था विश्वनाथ मणि त्रिपाठी गांव की खेती का कार्य देखते और उमाशंकर मणि त्रिपाठी सरकारी डॉक्टर आर्युवेद थे कभी यहॉ कभी वहाँ स्थान्तरण होते नौकरी करते हंसः नाथ मणि त्रिपाठी पूरे परिवार की शक्ति सम्मान् के मेह थे उनके ही पुरुषार्थ से पण्डित जी के परिवार का रसूख शौर्य जिनके नाम से पण्डित जी का परिवार समानित प्रतिष्ठित था।
अशोक धीरे धीरे पांच साल का हो गया पण्डित हंस नाथ मणि हर अधिक मास में एक माह श्रीमद्भागवत कि कथा गांव के ही बगल के गांव परासी चकलाल के मंदिर सुनाते मंदिर भी उन्होंने ही बनवाया था सदानंद मिश्र जी के कोई संतान नही थी उन्होंने पण्डित हँसनाथ मणि के सलाह पर राधाकृष्ण का मंदिर बनवाया उसी मंदिर पर अधिकमास में बाबा हंसनाथ कथा वाचन करते साथ अशोक को भी ले जाते अशोक कथा समय रहता और फिर चला आता बाबा एक माह वहीं रहते कथा के दौरान लोग श्रद्धा में फल मिठाई आदि चढ़ाते जिसे कथा समाप्ति के बाद बाबा अशोक को चढ़ावे के मिठाईयों फलों में से निकाल कर देते जिसे वह बड़े चाव से खाता उस वर्ष अधिक मास में आम बहुत कम चढ़ाए जाते क्योकि आम की फसल उस वर्ष हुई नही थी कथा के दौरान एक दिन एक महिला ने बहुत खूबसूरत एक ही आम कथा में श्रद्धा से चढ़ाया कथा समाप्त होने पर बाबा ने वही आम उठा कर अशोक को दे दिया अशोक ने वह आम खा लिया दोपहर में बहुत धूप थी धूप में अशोक घर पहुंचा कुछ देर बाद ही उसे भयंकर बुखार चढ़ गया घर परिवार के लोंगो ने समझा कि कोई व्यतिक्रम हो गया होगा बुखार उतर जाएगा लेकिन बुखार उतरने का नाम ही नही ले रहा था एक दिन दो दिन सप्ताह बीत गया अब घर वालो को चिंता होने लगी घर वालो ने बुखार के कारणों का पता लगाना शुरू कर दिया जब पता लगा कि अशोक श्रीमद्भागवत पर एक महिला भक्त द्वारा चढ़ाए गए आम खाया और घर लौटा तभी से बीमार है तो जादू टोना भूत प्रेत कि बाधा के भी तौर तरीके अपनाए जाने लगे अशोक के बाबा पण्डित हँसनाथ मणि त्रिपाठी जी कही बाहर दो तीन दिन के लिए गए थे एव दो तीन दिन कि दवा देकर गए थे जब लौटे और देखा कि अशोक की झाड़ फूंक टोटका तंत्र मंत्र तांत्रिक प्रक्रियाओं में इलाज के सिलसिले से भटकाने का कार्य उनकी अनुपस्थिति में हो रहा है तो उन्होंने घर के सभी लोगो को एकत्र करके बहुत क्रोधित होते हुए फटकार लगाई और कहा भूत यानी बिता हुआ अवशेष जो सदैव प्रेरक ही होता है सकारात्मक है तो प्रेरक नकारात्मता है तो भी सार्थक प्रेरक ही होगा भूत जो किसी पूर्व मनुष्य कि आत्मिक छाया होती है आत्मा ईश्वर का अंश होती है और ईश्वर किसी के लिये घातक कैसे हो सकता है जो भी मनुष्य शरीर छोड़ता है उंसे कर्मानुसार दूसरा शरीर धारण ही करना पड़ता है यदि किसी कारण बस दूसरे शरीर की प्राप्ति में बिलम्ब है तब भी वह ईश्वर अंश आत्मा स्वछंद आकाश में अपने मार्ग को तलाशती है जो किसी का अहित तो सोच नही सकती अतः अशोक को कोई भूत प्रेत बाधा नही है जो आम इसने प्रसाद के स्वरूप खाया था उंसे मैंने दिया था जिसे बड़ी श्रद्धा से एक नारी शक्ति की श्रद्धा में अर्पित किया था वह कैसे अशोक को हानि पहुंचा सकता है अशोक को टायफाइड जैसा बुखार है जो ठीक होगा समय लगेगा बाबा के स्वर आज भी मेरे कानों में ऐसे गूंजते है जैसे वह साक्षात सामने बैठे वैसे ही बोल रहे हो जैसे कि जुलाई उन्नीस सौ छाछठ में बोल रहे हो ।
नन्दलाल मणि त्रिपठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।