Pyar ke chappu se , jindagi ka naiya par lagane chale the ha
कभी उगता हुआ तारा रोशनी बांट लेता है
तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।
ब्रह्मांड के विभिन्न आयामों की खोज
दिल में कुण्ठित होती नारी
पहले साहब परेशान थे कि हिन्दू खतरे मे है
पंक्ति में व्यंग कहां से लाऊं ?
जय रावण जी / मुसाफ़िर बैठा
ईमेल आपके मस्तिष्क की लिंक है और उस मोबाइल की हिस्ट्री आपके
“WE HAVE TO DO SOMETHING”
मेरे मन के धरातल पर बस उन्हीं का स्वागत है
शिशिर ऋतु-३
Vishnu Prasad 'panchotiya'
नज़रें बयां करती हैं, लेकिन इज़हार नहीं करतीं,
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
हर अदा उनकी सच्ची हुनर था बहुत।
*समझो बैंक का खाता (मुक्तक)*