** आसमां में सर अब उठा चाहिए **
जिंदगी को अब विराम चाहिए
आदमी को अब आराम चाहिए
कशमकश जिंदगी में बहुत है
हल करने को हमराह चाहिए।।
जीवन की कश्ती को पतवार चाहिए
डूबने वाले को तो मझधार चाहिए
करले कोशिश एकबार फिर दिल से
साहिल को तिनके का सहारा चाहिए।।
मगरूर दिल को अहंकार चाहिए
दिल चाहता, गैर-इकरार चाहिए
मकां अपना है होने को खण्डर
गैर के दिल में बवंडर चाहिए।।
मसनद का भला आराम चाहिए
प्यारा सा आँखों-पैगाम चाहिए
नस नस में नशा छाया है अब
उल्फ़त का खुला पैगाम चाहिए।।
मैल मन का अब धुलना चाहिए
रंग प्यार का अब घुलना चाहिए
शक़्ल मालूम ना हो इकदूजे की
आईना भी अब झूमना चाहिए ।।
खत्ताओं का नही हिसाब चाहिए
चेहरे पर नहीं हिज़ाब चाहिए
जरा दिल से पर्दा उठा देखिए
सुहाना खुला दिलआसमां चाहिए।।
मुझे अब ना दिल का ख़ुदा चाहिए
मैं पत्थर हूं भला किसका चाहिए
जिंदगी की अब चाहत है किसको
नाहक़ ख़ुदी को अब क्या चाहिए।।
बेसहारा नहीं जो आसरा चाहिए
सहारा किसी का अब क्यूं चाहिए
बैशाखियाँ कब तक निभाएगी साथ
आसमां में सर अब उठा चाहिए।।
?मधुप बैरागी