आसमाँ …….
आसमाँ …..
बहुत ढूँढा
आसमाँ तुझे
दर्द की लकीरों में
मोहब्बत के फ़कीरों में
ख़ामोश ज़खीरों में
मगर
तू छुपा रहा
धड़कन की तड़पन में
यादों के दर्पण में
कलाई के कंगन में
वक्त सरकता रहा
सागर छलकता रहा
अब्र बरसता रहा
मगर
तू न समझा
मैं किसे ढूँढता हूँ
पागल आसमाँ
मैं तो
इस दिल की ज़मीं का
आँखों की नमीं का
अपनी ज़बीं की
हसरतों का
आसमाँ ढूँढता हूँ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित