Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 May 2023 · 6 min read

आश्रय

विष्णु जी और दिव्या जी की शादी हुए ४० वर्षों से अधिक बीत चुका था दो लड़का और दो लड़की हैं, सभी की शादी हो चुकी थी। विष्णु जी रिटायर कर चुके थे। घर में अपनी पत्नी के साथ सुखमय जिंदगी बिता रहे थे । उनका गुजारा पेंशन से आराम से चल रहा था ।

सावन का महीना शुरू हो चुका था और चार-पांच दिन से बारिश हुई जा रही थी। विष्णु जी घर में बैठे अपनी धर्मपत्नी दिव्या को बोल रहे थे कि आज चार-पांच दिन हो चुका है मॉर्निंग वॉक के लिए नहीं जा पा रहा हूं ।उस पर दिव्या जी का बड़े मीठे स्वर में विष्णु जी से बोलती हैं, चार-पांच दिन हो गए आप मॉर्निंग वॉक नहीं बल्कि अपनी मंडली से मिलने भी नहीं जा सक रहे है, यही बात आपको खाए जा रहा यह लग रहा मुझे । आप यह भी ख्याल कर लीजिए कि 4 – 5 दिन से घर में सब्जी का बाजार नहीं हुआ है ,आपका ऑर्डर भी पूरा होते जा रहा है आज अगर सब्जी बाजार नहीं गए तो शाम में सावन वाली बारिश तो होगी मगर गरम -गरम पकोड़ा का मांग मत कीजिएगा । विष्णु जी ने सर हिलाकर अपनी रजामंदी जाहिर की आज बाजार जाना ही होगा।

दोपहर के खाने के बाद दिव्या जी विष्णु जी को बोलती है कि मेरा दो- तीन दिनों से शरीर अच्छा नहीं लग रहा। विष्णु जी कहा कल डॉक्टर के पास ले जाऊंगा। मैं डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लेता हूं। विष्णु जी और दिव्या जी का परसों शादी का सालगिरह आने वाली थी। विष्णु जी सुबह को ही दिव्या जी का मनपसंद केक का ऑर्डर दे आए थे। शाम होने के बाद दिव्या जी ने कहा मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रहा। आज दोपहर का खाना ज्यादा बन चुका है वही रात में खा लीजिएगा ,ठीक है। मेरा भी पेट भारी -भारी लग रहा है तो मैं भी कुछ हल्का ही खाऊंगी और ज्यादा तबीयत खराब लगता है तो डॉक्टर के पास चली जाऊंगी । देखो ना हम दोनों के हालात कैसे हैं ? ऐसा लगता है राजा दशरथ की तरह मरने के वक़्त पानी देने वाला कोई संतान नहीं रहेगा ….. .बात को काटते हुए ऐसा क्यों बोल रही हो मैं तो तुम्हारे संग हूं और तुम्हारा हमारे साथ सात जन्मों का संग है। दिव्या जी आप मेरी जिंदगी में जब से आए हो एक सच्चे मित्र के तरह रहे हो।विष्णु जी ने दिव्या जी के हाथ पकड़ कर कहा आप मेरे सच्चे मित्र की तरह पांव से पांव और कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे है ।
तभी फोन का रिंग आया देखो लगता है आप के मित्र महेश जी का फोन होगा लगता उन्हें भी घर में मन नही लग रहा होगा। विष्णु जी ने मुस्कराते हुए फोन को उठाया बोलो महेश क्या बात है बारिश का मजा ले रहे हो ।महेश ने कहा नही अब बुढ़ापा का मजा ले रहा हूं ।यूं ही फोन कर रहा था सोते- सोते सारे शरीर अकड़ सी गई है। एक तुम ही हो जो बचपन से आज तक हर सुख -दुख ,धूप – छांव में बड़े भाई का तरह साथ दिया और तुम ने भी तो सुदामा के तरह मुझे भी आलिंगन करके रखे हो ,अच्छा रखता हूं अगर बारिश कल नही हुई तो सुबह मिलते है कुछ खास बात करनी है मुझे तुमसे ।
हां, जी मेरी परी जैसी प्यारी धर्मपत्नी महेश का ही फोन था । हां पता हैं, मुझे आप की हंसी मुख से पता चल गया महेश है। तुम तो महेश को सौतन ही समझती हो शायद तुम जानती ही नहीं कि जब पिता जी साथ महेश ही तुमको देखने गया था और मुझ से पहले महेश से ही आप की भेट हुई है । वो अगर आपको पसंद नहीं करता तो आप मेरी संगनी नहीं हो पाती ।दिव्या जी, पिताजी ने तो मना ही कर दिया था । हां, पता है मुझे पिताजी ने कहा था कि मैं सुंदर थी बोले कि घर संभाल नही पाऊंगी। वो महेश की जिद से आप मेरी जिंदगी में रंग भर दिए। दिव्या जी महेश ने हर मोड़ में मेरा साथ दिया हैं और बचपन में जब पापा से ना बोल कर तलाब में तैराकी सीखने गया था और महेश ने अपने जान पर खेलकर मुझे डूबते हुए बचाया था। ये जीवन तो उसकी दूसरी देन हैं ।हां , मुझे पता है दिव्या जी मेरे पिताजी किसान थे और मैं किसान का बेटा । स्कूल, कॉलेज और ट्यूशन करते समय महेश ने मेरी फीस कितने बार ही भरा शायद ‌ही मैं इसका हिसाब कर पाऊंगा। मैं सदा ही महेश का ऋणी रहूंगा। कृष्ण और सुदामा की तरह और वो मुझे सच्चे मित्र की तरह जिंदगी की हर मोड़ साथ देता रहा ….इसलिए तो सब आप की दोस्ती की कसम पूरी आप की मंडली खाते है । लेकिन आज महेश से फोन पर बात करने से लगा वो बहुत दुविधा में या कोई परेशानी में है। मुझे बात करने मे उसके स्वर उखड़ रहे थे पता नहीं क्या बात हुई है ?

रात बहुत हो चुकी है शायद गोधली बेला भी कुछ देर में हो जाए लेकिन आज महेश का करवट बदल – बदल कर नींद नहीं आई।वह सोच कर व्याकुल हो रहा था और हताशा की याद में जल रहा था कि कैसे अपने परम मित्र जैसे भाई को बता पाएंगे कि कौन पीढ़ा से जूझ रहा हूं? उम्र होने से शारीरिक समस्या तो होती ही है लेकिन उसके साथ मानसिक पीढ़ा आने से जीवन का स्वाद और फीका हो जाता है। महेश का बीवी काव्या का स्वर्गवास कोरोना में ही हो गया था ।तभी से घर में बहु – बेटे का उत्पीड़न बढ़ चुका है ।महेश की पत्नी काव्या उसकी ढाल थी।ये अब यह चिंता खाई जा रही थी की अब तक उसने अपने दोस्त विष्णु से ये बात छिपा कर रखा था पर कल मैं उसे अब बता दूंगा और अपने नए आश्रय की ओर जाऊंगा।
पो फटने से पहले ही विष्णु महेश से मिलने पार्क पहुंचा
महेश ने बताया कि मैं आज से पहले ये बात तुमको कभी भी महसूस होने नहीं होने दिया विष्णु जो आज हम तुमको बताने जा रहा हूं। मेरा प्यारा एकलौता बेटा शादी के बाद पहले जैसा नहीं रहा है ।मुझसे मीठी- मीठी बात करके सारी जायदाद अपने नाम करवा लिया । पहले तो मेरा कमरा ले लिया और मुझे घर के रिनोवेशन के नाम पर नौकरों वाले कमरे में रख दिया ।फिर कुछ दिन बाद बेटा और बहू मिलकर मेरे साथ अमानवीय व्यवहार करना शुरू कर दिया । दिन पर दिन महीनों पे महीनों यह सिलसिला चलता जा रहा है। अब सहन नहीं हो रहा है। यह कहते हुए दोनों के आंखों में आंसू आ गए ।विष्णु अब मैं घर छोड़कर वृद्धा आश्रम में रहने जा रहा हूं इसलिए अंतिम बार तुमसे भेंट करने आया हूं। शायद मैं अब वही सकून की जिंदगी बिता पाऊं। विष्णु ने कहा बिलकुल नहीं तुम वृद्धा आश्रम मे नहीं बल्कि मेरे घर में मेरे साथ रहोगे और तुम इसके लिए ना नहीं करोगे , अब चलो।
आज मेरी सालगिरह है और मैं अपनी जीवन संगनी को यहीं तोफा दूंगा । यही हमारा नया आश्रय होगा ।दोनों मित्र के मुख में अजीब सी आभा थी और खुशी- खुशी अपनी आश्रय की ओर प्रस्थान करते है ।

विष्णु ,दिव्या और महेश को एक नया लक्ष्य अपने जीवन को मिला । तीनों ने मिल कर एक एनजीओ के साथ मिलकर आपने घर को आश्रय आश्रम मे बदल कर और भी कुछ लोगो को जोड़ कर आपनी जीवन के अंतिम समय बिताने लगे।
दुख और सुख जीवन का स्वाद है जिस तरह भोजन में खट्टा, मीठा, तीखा और नमकीन ।जीवन में एक सच्चा मित्र होना भी आवश्यक है।

शिक्षा : ईमानदारी सभी रिश्तों में बनाई रखनी चाहिए। सच्चा दोस्त का संबंध पति पत्नी के जैसा जन्मों जन्मांतर तक रहता है ।

20 Likes · 27 Comments · 527 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from goutam shaw
View all
You may also like:
असंवेदनशीलता
असंवेदनशीलता
Shyam Sundar Subramanian
बूँद-बूँद से बनता सागर,
बूँद-बूँद से बनता सागर,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
छेड़ता है मुझको यशोदा मैया
छेड़ता है मुझको यशोदा मैया
gurudeenverma198
"फुटपाथ"
Dr. Kishan tandon kranti
ढूंढें .....!
ढूंढें .....!
Sangeeta Beniwal
गरमी लाई छिपकली, छत पर दीखी आज (कुंडलिया)
गरमी लाई छिपकली, छत पर दीखी आज (कुंडलिया)
Ravi Prakash
- मोहब्बत महंगी और फरेब धोखे सस्ते हो गए -
- मोहब्बत महंगी और फरेब धोखे सस्ते हो गए -
bharat gehlot
हम तो किरदार की
हम तो किरदार की
Dr fauzia Naseem shad
देना और पाना
देना और पाना
Sandeep Pande
नाकाम मुहब्बत
नाकाम मुहब्बत
Shekhar Chandra Mitra
2598.पूर्णिका
2598.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
हरि से मांगो,
हरि से मांगो,
Satish Srijan
बारिश
बारिश
विजय कुमार अग्रवाल
कौन नहीं है...?
कौन नहीं है...?
Srishty Bansal
" एक बार फिर से तूं आजा "
Aarti sirsat
■ मुक्तक
■ मुक्तक
*Author प्रणय प्रभात*
साहित्य में साहस और तर्क का संचार करने वाले लेखक हैं मुसाफ़िर बैठा : ARTICLE – डॉ. कार्तिक चौधरी
साहित्य में साहस और तर्क का संचार करने वाले लेखक हैं मुसाफ़िर बैठा : ARTICLE – डॉ. कार्तिक चौधरी
Dr MusafiR BaithA
बेवक्त बारिश होने से ..
बेवक्त बारिश होने से ..
Keshav kishor Kumar
नया साल
नया साल
'अशांत' शेखर
राखी
राखी
Shashi kala vyas
मोबाइल
मोबाइल
लक्ष्मी सिंह
फिर पर्दा क्यूँ है?
फिर पर्दा क्यूँ है?
Pratibha Pandey
संत हृदय से मिले हो कभी
संत हृदय से मिले हो कभी
Damini Narayan Singh
How do you want to be loved?
How do you want to be loved?
पूर्वार्थ
*मन  में  पर्वत  सी पीर है*
*मन में पर्वत सी पीर है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
परम प्रकाश उत्सव कार्तिक मास
परम प्रकाश उत्सव कार्तिक मास
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
“पहाड़ी झरना”
“पहाड़ी झरना”
Awadhesh Kumar Singh
* मुक्तक *
* मुक्तक *
surenderpal vaidya
कभी लगते थे, तेरे आवाज़ बहुत अच्छे
कभी लगते थे, तेरे आवाज़ बहुत अच्छे
Anand Kumar
प्रणय 2
प्रणय 2
Ankita Patel
Loading...