आशिक
दिल में चाहत छुपाये
मिलने को तुझसे चाहे
बावला सा हैं
कँहा कुछ जानता हैं ये
गगन,अम्बर छूने को चाहे
नदियाँ, पर्वत,
चाँद,तारे लाने को माने
आशिक मिज़ाज हैं
मेरी कँहा मानता हैं ये
तन्हाईयाँ, खामोशिया
सब जानता हैं
किसी के दिल में रहे,और
किसी और की मानता हैं ये
बेईमान सा,फरेबी सा हैं
मेरी दिल की
बिल्कुल भी नही मानता हैं ये
लाख समझाऊ, लाख मनाऊ मैं
आशिक मिज़ाज हैं
मेरी कँहा मानता हैं ये
आवारा,पागल,दीवाना सा
अब बना घूमता हैं
उसकी गलियों के चक्कर लगाये
बिन सोचे समझे उसको निहारे
बावला हो गया हैं
आशिक मिज़ाज हैं
मेरी कँहा मानता हैं ये
चाँद को देख कर निहारता रहे
बारिश में याद में उसकी भीगता रहे
जुनूनी हैं दिल ये
आशिकी में पागल
मेरी कँहा मानता हैं ये
मोबाइल में अपने
सिर्फ उसके मैसज
का इंतज़ार करे
फोटो देखकर,सिर्फ उसको
बार बार निहारता रहे
आशिकी में उसके
देखो शायरी भी करे
पगला सा हैं
बावला हो गया हैं
दिल सिर्फ उसके पास रहे
स्वार्थी हो गया हैं
सिर्फ उसको ही सोचे
उसको ही चाहे
देखो
आशिक हो गया हैं
दिल दीवाना अब
मेरी कँहा मानता हैं ये!!
®आकिब जावेद