आशा
आशा
आशा क्यों करता तू मन रे!
कोई साथ न देनेवाला।
कोई खोज न लेनेवाला।
आशा कभी करो मत मन रे!
अपनी अपनी माया में सब।
समय किसी के पास नहीं है।
जग में कोई दास नहीं है।
अपना सपना लगता है अब।
मन से कहो रहे प्रभु घर में।
यद्यपि यह अति कठिन काम है।
नीरस लगता राम नाम है।
चल मन धीरे तू रघुबर में।
मायापुर यह सर्व जगत है।
झाँक स्वयं में पर्व स्वगत है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।