आशा और विश्वास
परिंदों के एक जोड़े,
तिनका तिनका है जोड़े;
मेहनत और लगन ने,
नए मोड़ पर ला छोड़े।
आशियाना बना तिनका का,
जीवन और शीर्ण-सा;
वृक्ष की सूखी टहनी पर,
अधर पर लटक रहा ।
स्वप्न का घोंसला,
भय रहा बिखरने का;
सच्चाई से दूर,
रह-रह कर यह कह रहा ।
पवन का एक झोंका,
तोड़ दे न मेहनत का भरोसा;
बस गया संसार,
उस सूखी हुई टहनी पर।
जन्म दिया अंडों से,
परिंदों ने जोड़े को;
बिसर गई याद फिर,
लटके हुए आशियांँ की ।
लगन लगी परवरिश में,
छूटा नहीं साथ ;
तिनका तिनका जोड़ा,
सफल अब लगने लगा ।
पल भर में समय ने,
भेजा एक पिशाच;
हवा का रूप लेकर,
तोड़ दिया सारी आस।
हो गए सब अनजान,
स्वप्न न शान;
परिंदे तो उड़ गए,
छोड़ गए तिनके को ।
लटक रहा जो अधर पर,
टहनी की ओट से;
उजड़ गया सब कुछ,
परिंदे यह सोच रहे ।
आस थी कृपा-निधान,
बचे अब तक उनके प्राण;
मन-ही-मन कर रहे,
धन्यवाद लख-लख बार।
टहनी पर लटका हुआ,
मेहनत और लगन ;
सफल हुए उनके,
वचन और कर्म ।
अब भी जो ताक रहे,
मेहनत की नई आस;
फिर बने नए आस,
करुणामयी देगा साथ ।
रखें खुद पर विश्वास,
यही है अपने पास;
काल से उबारकर,
जीवन देगा वह दान।
परिंदों का यह विश्वास,
कहता बार-बार ;
पवन का झोका,
तोड़ा था मेहनत का आस।
?बुद्ध प्रकाश; मौदहा, हमीरपुर।