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1 Dec 2022 · 4 min read

आवेदन-पत्र (हास्य व्यंग्य)

आवेदन-पत्र (हास्य व्यंग्य)
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हमने एक आवेदन पत्र लिखा था। उसे रिसीव कराने के लिए सरकारी दफ्तर में गए। दफ्तर में जाकर हमने पूछा-” यह आवेदन पत्र क्या आप रिसीव कर लेंगे ?”
जिस सज्जन से बात हो रही थी उन्होंने आवेदन पत्र को देखा और कहा “हम आवेदन पत्र रिसीव नहीं करते । आप की समस्या कमरा नंबर तीन में बाबूजी बैठे हैं । वही देखेंगे।”
हम कमरा नंबर तीन में गए। वहां कोई बाबू नहीं थे। एक व्यक्ति हमारी तरह ही शायद आवेदन पत्र लेकर आया था। हमने पूछा” बाबू कहां हैं ? ”
वह बोले “दस मिनट पहले पान खाने गए थे । पॉंच मिनट में आने की कह गए थे ।मैं भी इंतजार कर रहा हूं ।”
हम भी इंतजार करने लगे। पूरे बारह मिनट के बाद बाबू आए ।मुँह पान की पीक से भरा हुआ था । हमने कहा -“यह आवेदन पत्र आपको देना है। ”
बाबू ने अपने मुंह से कुछ कहा । मगर वह मुंह में पीक की अधिकता के कारण हमारे पास तक चलकर नहीं आया। हमने पुनः प्रश्न किया” आपने जो कहा, वह मैं समझ नहीं पाया ।”
इस बार बाबू ने मुंह से कुछ नहीं कहा। केवल अपने मुख की ओर इशारा किया था।जिसका आशय यह था कि अभी मुझे डिस्टर्ब मत करो। मेरे मुंह में पीक भरी हुई है। हमने चुपचाप बैठना ही उचित समझा। थोड़ी देर बाद बाबू पीक थूक कर आए। बैठे, बोले “आपका काम यहां नहीं हो पाएगा । कमरा नंबर चार की जगह पर जो बाबू हैं, वह आपके मैटर को डील करते हैं । वही देखेंगे। हम कमरा नंबर चार में गए। पता चला कि वहां के बाबू आज छुट्टी पर हैं।वहां उपस्थित कर्मचारी से पूछा-” बाबू का काम कौन करेगा?”
चपरासी मुस्कुराया बोला” बाबू का काम कौन करेगा ? बाबू का काम तो केवल बाबू ही करेंगे”।
हमने कहा” तो भैया यह और बता दो कि बाबू कब आएंगे?”
वह बोला “कल देख लेना।”
हमने कहा” क्या मतलब आपका? बताओ, आएंगे कि नहीं आएंगे? हमें भी चलकर आना पड़ता है । समय और पैसा खर्च होता है ।”
वह हँसकर बोला” परसो आएं।”हम समय के अनुसार दो दिन इंतजार करके फिर दफ्तर गए। बाबू वहां नहीं थे। कमरा नंबर चार की सीट खाली थी । चपरासी वहीं था। हमने दुखी होकर पूछा” क्यों भाई तुम तो कह रहे थे कि परसों आ जाएंगे ? ”
वह.बोला” परेशान क्यों हो रहे हो ? आ जाएंगे। अभी दस मिनट में आते होंगे। हमने कहा-” पान खाने गए होंगे ? ”
बोला” नहीं… मूंगफली लेने।”
खैर ठीक दस मिनट के बाद बाबू मूंगफली की थैलिया लेकर आ गए। हमने उनके आगे आवेदन पत्र बढ़ाया। उन्होंने मूंगफली की थैलिया में से हाथ डालकर मूंगफली निकाली और छीलकर खाने लगे। जब मूंगफली खा चुके तो दोबारा से मूंगफली निकाली और खाने लगे। हमने कहा “हमारा आवेदन पत्र देख लीजिए ।”
वह बोले देख ही तो रहा हूं ।और फिर मूंगफली खाने में व्यस्त हो गए ।फिर बोले” एक मिनट के लिए आप खाने नहीं देंगे? बताइए क्या काम है?”
हमने कहा “इस आवेदन पत्र पर कार्यवाही होनी है ”
“नहीं होगी”-वह बोले।
हमने कहा “क्यों ?”
“यह मेरे कार्यक्षेत्र में नहीं आता”उनका जवाब था।
हमने कहा “कमरा नंबर तीन वाले बाबू तो कह रहे थे कि यह आपके कार्यक्षेत्र में आता है ”
वह थोड़ा गुस्सा हुए बोले हमारे कार्य क्षेत्र में क्या आता है ,और क्या नहीं आता है -यह बात केवल हम ही जानते हैं ।”
हमने कहा “कोई बात नहीं ..अब आप यह बताइए कि हमें क्या करना है?”
वह बोले “आप ऐसा करिए कि जीने से चलकर ऊपर चले जाइए और वहां कमरा नंबर एक में जो सज्जन भूरे बालों वाले बैठे हैं, उनसे मिलिए।”
मरता क्या न करता हम जीना चढ़ कर ऊपर गए। कमरा नंबर एक में प्रवेश किया। सामने सामने सीट पर कोई बैठा नहीं था। चपरासी था। उसने कहा-” हां ! कमरा तो यही है ,लेकिन साहब चार दिन बाद आएंगे ।तब तक आपका काम नहीं हो पाएगा। ”
हमने कहा अगर कोई बाबू शादी में रहेंगे तो क्या दफ्तर के काम पेंडिंग पड़े रहेंगे?”
वह बोला”दफ्तरों में में ऐसा ही होता है।”
मजबूरी के कारण हम चौथे दिन दफ्तर गए। जीना चढ़े ।देखा सामने कमरे में भूरे बालों वाले सज्जन कुर्सी पर बैठे हुए थे। हमारा मन प्रसन्न हो गया ।”चलो मंजिल मिल गयी।”
हम उनके पास गए । उन्होंने आवेदन पत्र देखा और कहा” अरे यह क्या ले आए ? संलग्नक तो आवेदन के साथ बिल्कुल भी नहीं हैं।”
हमने कहा” यह क्या होता है?”
वह बोले” बराबर के कमरे में जाइए। वहां एक महिला बैठी मिलेंगी। वह आपको इस प्रकार के आवेदन पत्र में संलग्नक कौन-कौन से लगाने पड़ते हैं ,यह बताएंगी।”
बगल के कमरे में गये। महिला बैठी हुई थीं। हमने कहा “संलग्नक चाहिए। कौन-कौन से लगाने हैं ।”
वह बोलीं “आपको आवेदन पत्र के साथ जो संलग्नक लगाने हैं , वह अभी दफ्तर में नहीं है। छपने गए हैं । दस-पंद्रह दिन में आशा है, छपकर आ जाएंगे। तब हम आप को उपलब्ध करा देंगे ।”
हमारी सहनशक्ति जवाब देने लगी थी। हमने कहा “कब आपके संलग्नक छपकर आएंगे , कब आप हमें देंगी, कब हम उनको पूर्ण करेंगे और कब आवेदन पत्र के साथ संलग्न कर के आप को देंगे ?”
वह बोलीं-” नहीं -नहीं! हमें कुछ नहीं देना है ! वह तो आप भरकर बगल वाले कमरे में बाबूजी को देंगे।”
हम ने कहा “आप आवेदन पत्र को रिसीव कर लीजिए ”
वह पीछे हट गई और बोलीं” आवेदन पत्र इस कार्यालय में रिसीव नहीं किए जाते हैं।”
हम फिर लौट कर जहां -जहां से आए थे ,वहां वहाँ पुनः गए ।सब से हमने कहा” मान्यवर ! आवेदन पत्र रिसीव कर लीजिए”
सब ने एक ही जवाब दिया “आवेदन पत्र हम रिसीव नहीं करते हैं ।कमरा नंबर तीन में जो तीसरी मंजिल पर है ,वहां जाकर पूछ लीजिये।”
हम तीसरी मंजिल पर चढ़कर कमरा नंबर तीन में पहुंचे तो वहां ताला लटका हुआ था। आसपास जो सज्जन घूम रहे थे, हमने उनसे पता करने की बहुत कोशिश की। लेकिन सब का यही जवाब था -“साहब यह कमरा तो बंद ही रहता है।”
—————————————————
लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

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