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9 Dec 2016 · 1 min read

आवारा कुत्ते ..

दफ़्तर से देर रात जब घर को जाता हूँ
चन्द कदमो के फ़ासले मे खो जाता हूँ

सुनसान सी राहे, ना कोई कदमो के निशा
ट्यूब लाइट की रोशनी, ना कोई कहकहा
कुछ अरमान जागते है सुबह मेरे जागने के साथ
रात को पाता हूँ, उन सब का दम निकला

ज़िल्लती, गोशानशीनी का एहसास कराने था वो खड़ा
मै अंदर से सहमा-सहमा पर बाहर से अड़ा||
मुझको नाशाद-ओ-नकारा समझ समझ रात को टोका
कल कुछ आवारा कुत्तो ने मुझ पर भौंका
मुझे खुद से बात करते पाया होगा, आधी रात को
समाज का दुतकारा हुआ,या बदलने मेरी जात को

मैं अनायास सोचने लगा….

आवारा कुत्ते तो हैं, जिन्हे मेरे वजूद का एहसास है
कोई देखे ना देखे, पर गवाह धरती और आकाश है
कुत्तो के अलावा किसको किसी की इतनी परवाह है
अनजानो की खातिर, क्या इंसान रातो को जगा है

इंसान अपने ही घर भी निडर कहाँ रहता है
जिसे अपना कहे, अपने कहाँ? किसको अपना कहता है
मुझे क़ैद कर देती दीवारो मे, चन्द पानी की बूंदे
कुत्तो को रोके, कहाँ बदनीयत बारिश, सर्द हवा है?
चन्द हैं इलाक़े मे, फिर भी गलियो मे निर्भीक घूमते है
अपना समझते है जिसको भी, बस उन्हे चूमते है

मेरी गली से, संसद की गलियो तक कुत्तो का शोर है
हर एक इलाक़े मे यहाँ कोई कुत्ता ही सिरमौर है
पर भौंक–भौंक कर ये सब, क्या कुछ नया कर पाएँगे
कुत्ते हैं, एक ना एक दिन ,कुत्ते की मौत मर जाएँगे ||

Language: Hindi
294 Views
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