*आया सूरज खिल उठा, धरती का नव-गात (कुंडलियां)*
आया सूरज खिल उठा, धरती का नव-गात (कुंडलियां)
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आया सूरज खिल उठा, धरती का नव-गात
रजनी बोली मैं चली, अब लो हुआ प्रभात
अब लो हुआ प्रभात, विहग मस्ती से चहके
सोए अब तक पुष्प, प्रफुल्लित होकर महके
कहते रवि कविराय, गान तोते ने गाया
फैलाए निज पंख, मुदित चखने फल आया
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गात = शरीर
विहग = पक्षी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451