आया सावन – पावन सुहवान
रिमझिम- रिमझिम बारिश की बूंदे ।
पड़ती जब धरा पर खिल उठे पुष्प।
चढ़ने को दूध भगवान शिव को चला है।
भीगा भीगा ये मौसम ज़न्नत सा लगा है।
मेंढ़क भी टर टर करने लगे है।
पपिहा भी अब तो आसमां में उड़ने लगे है।
इक बसंत इक सावन – दो ही ऐसा महीना।
जिस पर धरती लगती है जैसे हीरा सोना।
धान के खेत लहलहाने लगे है ।
जामुन भी फलने लगे है।
धतूरा, भांग भोले के लिए कांवरिया लेकर चलने लगे है।
नदियां भी उफान मारे झरने भी गरजने लगे है।
सरोवर, ताल तलैया में कमल, कुमुदिनी खिलने लगे है।
भौरे भी होकर मस्ती में मगन डहकने लगे है।
बगुला, सारस, मोर सब ही तो शोर करने लगे है।
पूर्णिमा का चांद और तारे अब तो रात में छत से ही दिखने लगे है।