आया सावन झूम के
फिर आयो जी मनभावन सावन
धरा ने ओढ़ी धानी चुनरिया।
गगन हुआ मनमगन
बरसाई कारी-कारी बदरिया।
पनघट पर छेड़े कान्हा जब
गगरी में जल ले चली गुजरिया
लाज न मुरलीधर तुझको
देख रही है सारी नगरिया।
–रंजना माथुर दिनांक 06/07/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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