आबरू बच गई मुहब्बत की
आग फिर इश्क़ की लगाया है
बज़्म में यूँ मुझे बुलाया है
आबरू बच गई मुहब्बत की
कब्र पर वो मेरी जो आया है
खाक मुझको जुदा करोगे तुम
रब ने उसको मेरा बनाया है
ढूंढ मत दर ब दर उसे नादाँ
रूह में वो मेरे समाया है
इश्क़ को खेल वो समझता था
खाक भी हाथ तो न आया है
– ‘अश्क़’