आपकी महफ़िल में बैठा हूँ मैं
आपकी महफ़िल में बैठा हूँ मैं
कौन कहता है कि तन्हा हूँ मैं
किसलिए ये दूरियाँ हैं बीच में
बेवफ़ा क्या तुमको दिखता हूँ मैं
ज़ख़्म कितने ही उभर आते हैं
इक ठहाका जब लगाता हूँ मैं
मुस्कुराता हूँ सभी के आगे
इसलिए की ग़म छिपाता हूँ मैं
हुस्न के मन्दिर की देवी हो तुम
इसलिए भी सिर झुकाता हूँ मैं